हर पिता अपने बेटे को जानना चाहता है, कुछ कहना चाहता है पर एक अनचाही, अनसमझी अदृश्य सोच, दोनों को थोडा दूर दूर रखे रहती है। चूँकि बेटे अपनी माँ और अपने बीच ऐसा कुछ महसूस नहीं करते हैं, इसलिए यह झिझक 'साइज़' में और भी बड़ी दिखती है, दूरी बनी रहती है। इस समस्या के विश्लेषण के लिए 'बेटा' और 'पापा' जैसे शब्दों के अन्दर उतर कर देखना समझना पड़ेगा।
बेटा शब्द का अध्ययन गूढता से करना होगा। 'बे' से सबसे आसानी से बनाने वाला शब्द होगा बेफिक्र। वहीँ 'टा' से 'टॉप ऑफ़ द हाउस' का विचार मन में आता है। यानि घर में बाप से थोड़ी ऊँची पोजीसन पर एक बादशाह। तो बेटा अर्थ निकला-"घर में बाप से बड़ा बेफिक्र बादशाह।"
अब पहले पुराने ज़माने के 'पिताजी' का अध्ययन करे तो, इसके तीन हिस्से होंगे।
पि- 'पिछड़ा हुआ' सबसे उपयुक्त बैठता है।
ता- तारीफ ना करने वाला।
जी- जीवन भर की ज़िम्मेदारी।
यानि पिताजी हुए - पिछड़ी सोच के, तारीफ ना करने वाले बेटे के सर पे पड़ी जीवन भर की ज़िम्मेदारी।
अब पिताजी के आधुनिक स्वरुप पापा का अध्ययन...
पा- पारदर्शिता से दूर
पा- पुरानी सोच वाला
तो 'पापा' यानि बेटे की पारदर्शिता सोच के आगे शून्य, बस पुरानी सोच का जीव।
"अब अगर ये कहे कि 'एक बेटा पिताजी के साथ रहता है।' तो कहना होगा बाप से बड़ा एक बेफिक्र बादशाह एक पिछड़ी सोच वाले, तारीफ़ ना करने वाले व् जीवन भर कि एक ज़िम्मेदारी बने, पारदर्शिता से दूर, पुरानी सोच वाले जीव के साथ रहता है। "
कड़वा लग रहा है ना! पर इस परिभाषा को १० बार लगातार पढ़िए। सच्चाई, इसकी मिठास बनकर आपका गला तर कर देगी। यह आज के ज़माने का सर्वत्र स्वीकार्य सत्य है। खैर, इन सब बातों से परे हट कर एक बाप को अपने बेटे कि हर बात मंजूर होती है। कहीं अगर वो टांग अडाता भी है तो बच्चे को गिरने से बचने के लिए। इसे वो समझ ना सके तो ये दुर्भाग्य भी बाप के हिस्से में ही जाता है।
अब रही बेटे कि भला सोचने कि बात। कौन ऐसा पिता होगा जो अपने बेटे कि उन्नति ना चाहे। अब तो दुआ है एक युग ऐसा आये, जहाँ एक बेटा अपने पिता से वो सब कहे, जो अपनी माँ से आसानी से कह लेता है।
बेटा शब्द का अध्ययन गूढता से करना होगा। 'बे' से सबसे आसानी से बनाने वाला शब्द होगा बेफिक्र। वहीँ 'टा' से 'टॉप ऑफ़ द हाउस' का विचार मन में आता है। यानि घर में बाप से थोड़ी ऊँची पोजीसन पर एक बादशाह। तो बेटा अर्थ निकला-"घर में बाप से बड़ा बेफिक्र बादशाह।"
अब पहले पुराने ज़माने के 'पिताजी' का अध्ययन करे तो, इसके तीन हिस्से होंगे।
पि- 'पिछड़ा हुआ' सबसे उपयुक्त बैठता है।
ता- तारीफ ना करने वाला।
जी- जीवन भर की ज़िम्मेदारी।
यानि पिताजी हुए - पिछड़ी सोच के, तारीफ ना करने वाले बेटे के सर पे पड़ी जीवन भर की ज़िम्मेदारी।
अब पिताजी के आधुनिक स्वरुप पापा का अध्ययन...
पा- पारदर्शिता से दूर
पा- पुरानी सोच वाला
तो 'पापा' यानि बेटे की पारदर्शिता सोच के आगे शून्य, बस पुरानी सोच का जीव।
"अब अगर ये कहे कि 'एक बेटा पिताजी के साथ रहता है।' तो कहना होगा बाप से बड़ा एक बेफिक्र बादशाह एक पिछड़ी सोच वाले, तारीफ़ ना करने वाले व् जीवन भर कि एक ज़िम्मेदारी बने, पारदर्शिता से दूर, पुरानी सोच वाले जीव के साथ रहता है। "
कड़वा लग रहा है ना! पर इस परिभाषा को १० बार लगातार पढ़िए। सच्चाई, इसकी मिठास बनकर आपका गला तर कर देगी। यह आज के ज़माने का सर्वत्र स्वीकार्य सत्य है। खैर, इन सब बातों से परे हट कर एक बाप को अपने बेटे कि हर बात मंजूर होती है। कहीं अगर वो टांग अडाता भी है तो बच्चे को गिरने से बचने के लिए। इसे वो समझ ना सके तो ये दुर्भाग्य भी बाप के हिस्से में ही जाता है।
अब रही बेटे कि भला सोचने कि बात। कौन ऐसा पिता होगा जो अपने बेटे कि उन्नति ना चाहे। अब तो दुआ है एक युग ऐसा आये, जहाँ एक बेटा अपने पिता से वो सब कहे, जो अपनी माँ से आसानी से कह लेता है।