“भारत” एक शब्द नहीं बल्कि वह भाव है जो देशवासियों के दिलों में
देशप्रेम और राष्ट्र के प्रति उसकी निष्ठा और समर्पण का संचार करता है। यह
राष्ट्रप्रेम की भावना ही है कि हम आधुनिकता के इस दौर में भी कहीं न कहीं अपनी
संस्कृति, नैतिक मूल्यों, परंपराओं व परिवारों को जोड़ कर रखे हुए हैं। यही कारण है
कि हमारे संस्कार आज भी व्यक्ति,
समाज और राष्ट्र
की परिकल्पना को संजोये हुए हैं उसमें राष्ट्र प्रथम सर्वोपरि है। प्राचीन काल हो
या आज का दौर जब भी कभी राष्ट्र के ऊपर किसी भी तरह का संकट उभरा है तो सभी
देशवासियों ने एक स्वर में एकजुटता का परिचय देते हुए उसका सामना किया है। “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियशि” इस बात की परिचायक रही है कि जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी
बढ़कर हैं.. पुराणों में निहीत यह सत्य आज भी युवाओं तक पहुंच रहा है तभी तो देश के
सम्मान की बात आते ही 'तन समर्पित.. मन
समर्पित.. और यह जीवन समर्पित...'
की भावना लिए आज
का युवा अपना सर्वस्व न्यौछावर करने तैयार हैं।
वैसे भी भारत युवाओं का देश है और यहां विश्व की सबसे अधिक उर्जा होने के कारण
सबकी नजरे भारत पर टिकी हैं। ऐसे में यह अतिआवश्यक हो जाता है कि भारत का युवा
अपनी जिम्मेदारियों को भलीभांति समझे और राष्ट्र के प्रति अपने दायित्वों का सही
तरीके से निर्वहन करे। विकास के इस पायदान पर युवा कितना भी आगे निकल गया हो लेकिन
कहीं न कहीं उसके दिल में अपनी सभ्यता, संस्कृति, ज्ञान परम्पराओं को लेकर आज भी जुड़ाव है। राष्ट्र के प्रति
उसके मन में एक उमंग है, समाज के प्रति उसके दिल
में एक संवेदना है। तभी तो हम गर्व से कहते हैं कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं
हमारी.... लेकिन यह भाव स्थाई रूप से सदैव बना रहे और देश की तरक्की में खुद का
योगदान सुनिश्चित हो सके इसके लिए कर्तव्यों के साथ-साथ अपनी जिम्मेदारियों को भी
समझना पड़ेगा। हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि देश हमें देता है सबकुछ हम भी तो
कुछ देना सीखे..
वैसे देखा जाए तो राष्ट्र प्रेम की भावना के साथ पले-बढ़े देशवासियों खासकर
युवाओं में राष्ट्र प्रथम का भाव हमेशा रहता है। जो उन्हें जीवन के हर क्षेत्र में
राष्ट्र सर्वोपरि की भावना के साथ आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। ऐसे में अगर शिक्षा
के क्षेत्र की बात करें तो उच्च शिक्षा के नाम पर विदेशों में पढ़ने वाले छात्र
अपनी शिक्षा पूरी कर स्वदेश में ही रोजगार पायें अथवा अपनी मातृभूमि पर कोई नया
उद्योग-धंधा चलाये तो यह कदम देश के विकास में मददगार ही होगा। साथ ही देश में
रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और कुछ अन्य युवाओँ में बेरोजगारी का ग्राफ भी नीचे
गिरेगा।
ठीक इसी प्रकार, सामाजिक, राजनीति और सांस्कृति परिक्षेत्र में भी युवाओं की भूमिका
को राष्ट्र प्रथम की भावना के साथ परिलक्षित किया जाये तो वह देश के मान-सम्मान
में चार-चांद ही लगाएंगे। जिस प्रकार भारतीय संस्कृति का प्रचार विदेशों में हो
रहा है उससे कितने ही देश हैं जो हमारी पारंपरिक रीति-रिवाजों को जानने और समझने
का प्रयास कर रहे हैं। कितने ही देश हैं जो हमारी सभ्यता पर शोध कर रहे हैं, काफी लोग हमारी संस्कृति को एक अलग और रुचिकर तौर पर देखते
हैं और इसके प्रति आकर्षित हो रहे हैं। यह सब दर्शाता है कि राष्ट्र प्रथम का भाव
किस प्रकार देशवासियों में समाहित है जो अपनी संस्कृति और सभ्यता का चाहे-अनचाहे, परोक्ष या अपरोक्ष रूप से प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। जिसके
बल पर हमारा देश विश्वपटल पर अपनी खूबियों के साथ उभर रहा है।
देश में हुए कई बड़े आंदोलनों में युवाओं ने रचनात्मक भूमिका निभाई है, जिसका सकारात्मक प्रभाव देश के सामाजिक और राजनैतिक
परिप्रेक्ष्य पर भी पड़ा। मगर वर्तमान में कुछ युवा आंदोलन उद्देश्यहीनता और
दिशाहीनता से ग्रस्त होकर भ्रमित हो गये। जिसका परिणाम यह हुआ कि देश के आधार
स्तंभ कहलाने वाले युवा देश के खिलाफ खड़े होते दिखे। ऐसे में कोई शक नहीं कि यदि
समय रहते युवा वर्ग को उचित दिशा नहीं मिली तो राष्ट्र का अहित होने एवम्
अव्यवस्था फैलने की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।
दुर्भाग्यवश वर्तमान समय में देश कुछ ऐसी स्थितियों से जूझ रहा है जिसमें देश
के कुछ युवाओं को मोहरा बनाकर चंद सेकुलर व वामपंथी दल अपने स्वार्थ को साधने का
काम कर रहे हैं। देश की अखंडता और एकता को प्रभावित करने के मंसूबे को लेकर काम
करने वाले कुछ संगठनों के खिलाफ 'राष्ट्र प्रथम' के भाव के साथ पूरा देश एकजुट हैं.. लगातार इन देशद्रोहियों
का प्रतिकार किया जा रहा है। ऐसे में जरूरत है कि युवाओं को ‘स्व’ और ‘पर’ का बोध कराते हुए यह
निश्चित किया जाए कि उनके मन-मस्तिष् में 'राष्ट्र प्रथम' का भाव प्रतिपल
समाहित हो। साथ ही यह सुनिश्चित किया जाये कि उनके विचार किसी बाह्य शक्तियों
द्वारा प्रभावित ना किया जा सके। ऐसे में जिस दिन प्रगतिशील भारत के प्रगतिशील
युवा इस बात को अच्छी तरह समझ लेंगे उस दिन भारत को ‘विश्व गुरु’
बनने से कोई रोक
नहीं पायेगा। लेकिन भारत को 'विश्व गुरु' बनाने दिशा में जरूरी होगा कि 'राष्ट्र प्रथम' की भावना के
ओत-प्रोत युवाओं का सही मार्गदर्शन किया जाये।
- आकाश कुमार राय
[लेखक राष्ट्रीय
छात्रशक्ति पत्रिका के संपादन मंडल सदस्य हैं।]
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