
भारतीय विकेटों के पतझड़ की घड़ी में आएगी ‘द वॉल' की याद
नई दिल्ली, 17 सितंबर। भारतीय बल्लेबाजी के मध्यक्रम की रीढ़ कहे जाने वाले राहुल द्रविड़ ने रंगीन लबादे के क्रिकेट प्रारूप को अलविदा कह दिया है। अपने 15 साल के एकदिवसीय करियर से विदाई लेते हुए द्रविड़ को भी तकलीफ हुई होगी लेकिन एक संतोष रहा होगा कि उन्होंने टीम को अपना भरपूर साथ दिया। पर इससे उलट उनके प्रशंसकों को जब भी एकदिनी मैच में विकेटों का पतझड़ देखने को मिलेगा, इस जीवट बल्लेबाज की कमी खलेगी।
आज से 15 वर्ष पूर्व यानि 1996 में क्रिकेट में पदार्पण करने वाले इस खिलाड़ी के बारे एक ही मिथ प्रचलित था कि यह धीमी गति का सुस्त बल्लेबाज है, जो एकदिवसीय फार्मेट में फिट नहीं आयेगा। 03 अप्रैल 1996 को श्रीलंका के खिलाफ खेले अपने पहले वनडे मैच में कुछ खास कमाल नही कर पाये थे, साथ ही काफी गेंदों का सामना भी किया। उनकी इसी प्रदर्शन को देखते हुए विशेषज्ञों ने कहा था कि द्रविड़ को काफी गेंदे चाहिए होती है जमने के लिए फिर उसके बाद वह रन बनाते है, तब तक मैच अंतिम मोड़ पर होता है। इस बैटिंग स्टाईल के कारण द्रविड़ शुरूआती करियर में एकदिनी मेचों को हिस्सा नहीं हो सके थे।

अपनी आलोचनाओं पर द्रविड़ ने एक बार कहा भी था, ‘शायद मैं एकदिनी फार्मेट को नहीं समझ पाया। मूझे पता है कि मैं क्रिकेट के इस प्रारूप में फिट नहीं हूं और न ही मैं गॉड गिफ्टेड हूँ पर मेरे पास हार न मानने और लगातार प्रयास करने की क्षमता है, जिससे मैं इस प्रारूप को भी समझ जाउंगा।' अपनी बातों को सही करते हुए द्रविड़ ने दिखा दिया कि कोशिश में अगर सच्चाई हो तो वह मंजिल का पा ही लेती है। द्रविड़ के वनडे क्रिकेट की उपलब्धियों पर नजर दौड़ाई जाये तो उनके खाते में पहला शतक (107 रन) 21 मई 1997 को चैन्नई में पाकिस्तान के विरूद्ध आया था। इसके साथ ही 300 से अधिक रनों की साझेदारी दो बार करने वाले एकमात्र बल्लेबाज हैं। द्रविड़ के नाम सचिन के साथ मिलकर 331 रन की विश्व रिकार्ड साझेदारी का कीर्तिमान भी है, जो उन्होंने न्यूजीलैंड के विरूद्ध बनाया है।
स्लो बैटिंग के लिए बार-बार आलोचनाएं झेलने वाले राहुल "द वॉल' द्रविड़ के नाम भारत के लिए दूसरा सबसे तेज अर्धशतक बनाने का रिकार्ड है। उन्होंने आस्ट्रेलिया के खिलाफ 22 गेंदों में नाबाद 50 रन बनाए थे। एकदिवसीय करियर में 12 शतकों के साथ 83 अर्धशतक का कारनामा भी द्रविड़ के नाम है, अर्धशतकों की संख्या के मामले में उनसे आगे केवल सचिन तेंदुलकर (95) ही हैं। इससे अतिरिक्त 79 मैचों में कप्तानी और 73 मैचों में विकेटकीपिंग भी की है। द्रविड़ ने अपने करियर में अपने विरोधियों और आलोचकों सभी को बल्लेबाजी से जवाब दिया है, और इनकी जवाबदेही की विपक्षी टीम भी कायल रही है। द्रविड़ का यही हुनर कि चाहे गेंदबाज कितने ही जतन करे द्रविड़ रन बनाने की जुगत खोज ही लेते हैं। राहुल के बारे एक कमेंटेटर ने कहा भी था, ‘है जुबां खामोश, बल्ला गवाही देगा... कोई कितना गढ़े किला, राहुल रन बना ही देगा।'

राहुल द्रविड़ को एकदिनी क्रिकेट से संयास लेने की बात कहने वाले आलोचक भी द्रविड़ की लगातार प्रदर्शन और सतत मेहतन की निष्ठा के कायल रहे हैं। अपने आखिरी एकदिवसीय मैच में शानदार पचासा लगाकर राहुल ने दिखा दिया है कि वह केवल इस लिमिटेड ओवर प्रारूप को अलविदा कह रहे हैं, क्रिकेट उनकी रगों में सदा समाहित रहेगा। गौरतलब हो कि 10 हजार से ज्यादा रन बनाने वालों में द्रविड़ ही एकमात्र बल्लेबाज हैं, जिन्होंने अपने अंतिम मैच में अर्धशतक (69 रन, 79 गेंद) भी लगाया। गांगुली (11363), जयसूर्या (13430) और इंजमाम (11739) अपने अंतिम मैच में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सके थे। विदाई मैच में जयसूर्या ने दो रन, गांगुली ने पंाच रन और इंजमाम ने 37 रन बनाये थे।