"आया
हूँ बनकर सन्देश मैं पावन से शहर में,
फिरता
हूँ आजकल यहां गलियों के भंवर में।
फूलों
सी गमकाई खुशबू भी अब साथ है अपने,
कि
बड़ी सादगी के जीया हूँ इस सनातन शहर में।
यहां
लोग सभी अपने ना है कोई पराया,
सुख-दुख
का है साया रहा हरदम ही सफर में।
हो
ना यकीन तुमकों तो कभी आ जाओं घर मेरे,
अल्हड़
सी मस्ती लिये फिरते, सब ‘बनारस’ शहर में।"
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