गुरुवार, 8 अक्तूबर 2020

मैं घर का मर्द था..


हर अधूरे ख्वाब की उम्मीद था मैं,
हर खुशी, हर चाह का पाबंद था मैं,
मैं ख्वाहिशों की हिट लिस्ट में दर्ज,
सभी की विश पूरी करने को जर्द था..
क्योंकि मैं घर का मर्द था...

रोती आखों को हंसाना था,
हर रुठे दिल को मनाना था,
खुशियां बांटकर अपनों में,
मुझे हरपल चलते जाना था,
क्यों... क्योंकि मैं घर का मर्द था...

मेरे गम मेरी आंखों से बहे ही नहीं,
कदम लड़खड़ाए जरूर पर थमे ही नहीं,
मजबूरियां-कमजोरियां मेरे किरदार के लिए नहीं,
हक की बातें पढ़ी अक्सर, पर कभी कही ही नहीं,
क्योंकि मैं ही तो घर का मर्द था...

गुरुवार, 16 अगस्त 2018

यह अटल भाग्य हमारा...



हे राष्ट्रोन्यायक, हे परम तपस्वी,
जन-जन के वाणी के संबल।
हे अन्त्योदय के प्रखर पुंज,
करते हैं तेरी हम जय जय।।

तुम स्थिरता, उद्वेग तुम्हीं हो,
इस जीवन का तेज तुम्हीं हो।
यह अटल भाग्य हम सबका है,
हमको जो मिला संस्कार अटल।।

जीवन की थाती देने को,.
आये तुम पृथ्वी पर हो विह्वल।
देश गढ़ा है जीत दिलों को, 
यह सकल विश्व अनुगामी है।
हे वाक प्रखर, हे कालजयी,
तुम सा न कोई बलिदानी है।।

अजर रहे तूं.. अमर रहे,
युगों-युगों तक प्रवर रहे,
शब्द तुम्हारे कण-कण गूंजे,
तूं पर्वत सा सदा अटल रहे।।

गुरुवार, 28 सितंबर 2017

कुछ ऐसे दोस्त जरूरी हैं...

कुछ ऐसे दोस्त जरूरी हैं...
अल्हड़ बातों पर व्यस्त रहे, दिन-रात चराचर मस्त रहे.
जो दौड़ पहाड़ों पर चढ़ जाए, समतल पर जो ढंगला जाए.. 
कुछ ऐसे दोस्त जरूरी हैं...

आंखों में जिनके पानी हो, खुशियां मन में धानी हों..
जो गौरव का आभास धरें, जीवन में हर्षोल्लास भरे..
कुछ ऐसे दोस्त जरूरी हैं...

जिनका आना-जाना संकट सा हो, ना आना और विकट सा हो..
मिलकर जिससे मन रम जाए, 
झगड़ें रोज भले जिससे, फिर पल में सब सुलझ जाए..
कुछ ऐसे दोस्त जरूरी हैं...

गुरुवार, 9 मार्च 2017

हिंदी...


हिंदी उमंग है, भाव में मलंग है..
एकता का सार है, विशुद्धता प्रमाण है..
हिंदी सत्संग है...

सपना हो, कहानी हो, या यादें पुरानी हो,
दुख की कोई बेला हो, या व्यक्ति अकेला हो
हर पल ये संग है.. 

जीवन के हास में और परिहास में..
घात-प्रतिघात में, आस-विश्वास में..
हिंदी सर्वांग है..

शब्द हो, बकार हो, मौन श्रृंगार हो..
अभिव्यक्ति का चाहे जो भी प्रकार हो...
हिंदी उतंग है...

गद्य है.. पद्य है.. भावों में व्यंग्य है...
देखता हूँ अब जहां, इसका अपना ही ढ़ंग है..
हिंदी नवरंग है...
#आkash

सिर्फ तुम...


कुछ ख्वाब सरीखे आंखों में, 
फिर समझौता रात से कैसे हो।
कुछ बातें तेरी मिश्री सी, 
फिर लब पर कटुता कैसे हो।

दिनभर मन में तुम रहते हो,
हर पल ख्याल तुम्हारे आते।
फिर तुम बिन मेरे जीवन में,
धड़कन का संभलना कैसे हो। 

जब बाहर-बाहर खुश रहता हूँ,
फिर अंदर उथल-पुथल कैसे हो।
मान लिया तुम्हें प्रीत की मूरत,
तुम अंतरमन में मंदिर जैसे हो।
#आkash

मंगलवार, 26 जुलाई 2016

डोप का डंक...

किसी भी खेल के लिए सबसे जरूरी बात होती है उसके प्रति खिलाड़ियों का समर्पण। खिलाड़ी जब अपने पूरे समर्पण और निष्ठा के साथ खेल को आत्मसात करता है तभी वह खेल के हर पहलू का लुत्फ उठाता है और सफलता की इबारत भी गढ़ता है। खेलों के महाकुंभ 'ओलंपिक' को लेकर तो खिलाड़ी इतना उत्साहित होता है कि उसके लिए पदक से ज्यादा बस उसमें सहभागिता की बात ही उसे रोमांचित कर देती है। ऐसे में अगर किसी खिलाड़ी को किसी भी वजह से ओलंपिक से दूर किया जाए तो उसकी मनोदशा को समझना ज्यादा कठिन ना होगा।
ओलंपिक खेलों के लिए देश का प्रतिनिधित्व करने वाली टीम में स्थान मिलने के बाद भी ओलंपिक जाने को लेकर संशय की स्थिति खिलाड़ी के आत्मविश्वास को पूरी तरह झंकझोर देती है। ऐसा ही कुछ मामला रियो ओलंपिक 2016 के शुरू होने से ठीक पहले घट रहा है। भारत की ओर से ओलंपिक में पदक की उम्मीद बने पहलवान नरसिंह यादव डोप टेस्ट में फेल पाये गये हैं। उन पर प्रतिबंधित दवाओं के सेवन का आरोप लगा है। ऐसे में नरसिंह के रियो ओलंपिक जाने को लेकर फैसला अब भी लंबित है। इसी प्रकार शॉट पुटर इंदरजीत सिंह का '' सैंपल भी डोप टेस्ट में पॉजीटिव पाया गया है।
डोप के इस डंक से जहां खिलाड़ियों का मनोबल प्रभावित होता है, वहीं देश की गरिमा पर भी कलंक लगता है। ऐसे में रियो ओलंपिक में भारत की मेडल जीतने की उम्मीदों को सबसे बड़ा झटका लगा है।
डोपिंग को लेकर खेल और खिलाड़ी पर अक्सर संदेह के बादल छाये रहते हैं। आम तौर पर एक खिलाड़ी का करियर छोटा होता है। अपने सर्वश्रेष्ठ फॉर्म में होने के समय ही खिलाड़ी अमीर और मशहूर होना चाहता है। इसी जल्दबाजी और शॉर्टकट तरीके से पदक (मेडल) पाने की भूख में कुछ खिलाड़ी अक्सर डोपिंग के जाल में फंस जाते हैं। मगर भारतीय खिलाड़ियों के साथ ऐसा कुछ है या नहीं, इसका जवाब तो मामले की जाँच के बाद ही सामने आ सकेगा।
जहां तक बात इंदरजीत सिंह की है... रियो के लिए क्वालीफाई करने वाले सबसे पहले एथलीट्स में से थे। वो एशियन चैंपियनशिप में गोल्ड, एशियन ग्रां प्री और वर्ल्ड यूनिवर्सिटी गेम्स में जीत हासिल कर चुके हैं। इंचियोन में इंदरजीत सिंह ने ब्रॉन्ज मेडल जीता था। कंधे की चोट के बावजूद इंदरजीत सिंह ने इंडियन ग्रां प्री में दूसरा स्थान हासिल किया था। यह विडंबना ही होगी कि इतने मौकों पर भारत का मान बढ़ाने वाले खिलाड़ी की वजह से ही आज खेल के वैश्विक स्तर पर भारत की फजीहत हो रही है। ऐसा ही कुछ पहलवान नरसिंह यादव के साथ भी है। ओलंपिक में भारत के लिए कुश्ती का स्वर्ण पदक जीतने का सपना संजोने वाले नरसिंह को डोप का ऐसा डंक लगा कि अब वो पदक तो दूर सहभागिता मिलने की आस लगा रहे हैं।
डोप मामले में फंसे खिलाड़ियों को लेकर केंद्रीय खेल मंत्री विजय गोयल ने स्पष्ट किया है कि दोनों खिलाड़ियों को अस्थायी तौर पर निलंबित किया गया है। अगर नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी का पैनल उन्हें दोषमुक्त करार देता है तो वे रियो ओलंपिक में हिस्सा ले सकते हैं। फिलहाल अस्थायी निलंबन के कारण ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व अब 118 खिलाड़ी करेंगे। बता दें कि पहले रियो ओलंपिक के लिए भारत ने 120 खिलाड़ियों का दल तैयार किया था।
डोपिंग की यह बीमारी केवल भारत में ही नहीं, पूरी दुनिया में फैली हुई है। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय खेल पंचाट ने डोपिंग को लेकर रूस की अपील खारिज कर दी, जिससे रूस की ट्रैक और फील्ड टीम रियो ओलंपिक में भाग नहीं ले सकेगी। यहां तक कि बीजिंग ओलंपिक 2008 के 23 पदक विजेताओं समेत 45 खिलाड़ी पॉजीटिव पाए गए। जाँच का परिणाम ये है कि बीजिंग और लंदन ओलंपिक के नमूनों की दोबारा जांच में नाकाम रहे खिलाड़ियों की संख्या अब बढ़कर 98 हो गई है।
वर्ष 2004 के एथेंस ओलंपिक खेलों में भी डोप के 26 मामले सामने आए। इससे पहले इतने खिलाड़ियों पर कभी भी डोपिंग का आरोप नहीं लगा। इन 26 खिलाड़ियों में से छह को पदक मिले थे। दो तो स्वर्ण पदक विजेता थे। बहरीन के राशिज रमजी के खून में तो ईपीओ तक पाया गया। ईपीओ से लाल रक्त कणिकाएं बढ़ जाती है और शरीर क्षमता से तेज काम करता है। इसके बाद रमजी से उनका स्वर्ण पदक छीन लिया गया।
डोपिंग के हालिया मामले और भारतीय खिलाड़ियों पर लगे आरोपों के बीच भारतीय प्रशंसकों की उम्मीद अब भी यहीं है कि दोनों खिलाड़ी नरसिंह यादव और इंदरजीत सिंह रियो जाएंगे। आखिर ऐसी उम्मीद हो भी क्यों ना.. जिस खिलाड़ी पर देश के लिए पदक जीतने का भार हो वो भला खेल दूर रहे तो किसे नहीं अखरेगा। खैर, खेल संघों की जाँच के जवाब पर ही यह तय होगा कि नरसिंह और इंदरजीत रियो में भारत का मान बढ़ाते हैं या डोप का डंक देश की गरीमा को लांछित करेगा।
    -आकाश कुमार राय

सोमवार, 13 जून 2016

बनारस ! तू मेरा प्यार है..

आज जो लौटा अपने बनारस तो लगा की जान में जान आई है... खुद से खुद का तार्रूफ कराने का सा अहसास हुआ। लगा कि मैं फिर से जी गया.. अपने शरीर में ही मूर्छित सा मैं था अब तक.. जो बनारस की मिट्टी को छुआ तो लगा जैसे संजीवनी मिली..।

कैंट से विद्यापीठ, सिगरा, रथयात्रा और भेलूपुर का रास्ता... इस कदर लोगों से खचाखच भरा था.. मानो मेरे आने की भनक से ही सब इकट्ठे हुए हों... मेरे ही स्वागत को जुटे हैं लोग... बेशूमार भीड़, गांड़ियों की पों-पों, कहीं मधुर शब्दों में भो....ड़ी का जोरदार उच्चारण... ये सब स्वाद सिर्फ बनारस ही दे सकता है... भले ही विकास के खांचे में कोई शहर कितना भी आगे निकल जाए मगर वो एक बनारसी को नहीं लुभा सका, तो उसका विकास बे-स्वाद सा लगता है...

आगे जब भेलूपुर चौराहे से विजया सिनेमा (जो अब आईपी विजया है) की ओर मुड़ा तो बाहें फैलाये शहर की सड़कें.. मेरा आलिंगन करने को बेताब दिखी... बनारस लौटकर आने से बड़ा सुख कोई नहीं..

लौंटा जो शहर में, तो यूं ही सारी पुरानी यादें अचानक मेरे जहन में कौंध गईं.. यहीं तो थीं वो सड़कें जहां बचपना खेल में बीता। इन्हीं गलियों में यारों-दोस्तों के बीच सारे त्यौहार मने..। आज सब कुछ वैसा है पर बस इन सब में मैं ही दूर हूँ.. एक यात्री की तरह बस शहर में घूमने आता हूँ.. या यूँ कहो कि शहर से दूर जितने पाप कमाता हूँ उन्हें ही काटने आता हूँ। बनारस मीलों में जरूर दूर हैं मगर जज्बातों और खयालों में ये मेरे साथ-साथ है..

सोनारपुरा, केदारनाथ गली, दशाश्वमेध, शिवाला और अस्सी ये वो स्थान हैं जिनका बखान किए बिना बनारस को मेरे नजरिए से नहीं जाना जा सकता। इन जगहों का ये आलम है कि यहां की हवाओं में महबूब की सी खुशबू आती है.. पता है, ना अब वो दिन हैं, ना ही उन दिनों की सी कोई बात.. मगर मेरी कल्पना ही सही.. यहां की गलियों में, घाटों पर आज भी यादों का वो जमघट मिल जाएगा। सोच तो ये भी है कि घाटों की सीढियां, गंगा की लहरें और मन्दिर की घण्टियाँ ये उन यादों से ही तो अलंकृत हैं... ये शोर आध्यात्म का, मेरे लिए शहर का प्रेम ही तो है.. शहर बदल गया है और लगातार बदल भी रहा है.. मगर शहर का हर कोना पुरानी यादों से लिपटा है, जो बता रहा है कि मैं आज भी यहां की फिजाओं में कहीं बसा हुआ हूँ।

बनारस.. जिसकी सोच ही व्यक्ति को पावन कर दे.. उस शहर को दिल-ओ-दिमाग में संजोए रखने वाला मैं किसी तीर्थ यात्री से कम थोड़े ही हूँ। बाबा भोलेनाथ, काल भैरव महाराज, संकटमोचन हनुमान जी और मां दुर्गा का मंदिर.. ये वो स्थान हैं जहां से मेरी हर यात्रा का प्रारम्भ हुआ और मेरे हर सफर का पड़ाव भी यहीं इनके चरणों में निमित्त रहा... इतनी अनुकम्पाओं के बाद भी बनारस तेरी कमी उस दिन खूब अखरती है जब मेरे माथे पर तिलक करने वाला कोई नहीं होता.. मैं शहर से दूर विकास की घटनाओं में घुटा सा जी रहा होता हूँ.. मेरे सूने से माथे पर ना मां के हाथ थाप देते.. और ना ही महादेव के नाम पर चंदन तिलक लगाने का सुख मिलता.. हां, सरे राह पंडित जी मिलते हैं माथे पर तिलक लगाने का कोरम भी पूरा करते हैं... बस इसी अहसास को पावन मानकर खुश हो लेता हूँ कि तू नहीं तेरा नाम सही.. माथे पर चंदन लगने के इस एक सोच से ही मेरी थकान को भी आराम मिलता है.. फिर तेरी ही याद का सुरूर लिए तेरा ये घुमक्कड़ सा आवारा बाशिंदा अपनी निगाहों को आराम देता है, कि कल फिर जब ये जगेगा तो सुबह-ए-बनारस से शहर को छानता हुआ शाम के पहर मां गंगा की आरती से तृप्त होगा।

बनारस शहर में....

"आया हूँ बनकर सन्देश मैं पावन से शहर में,
फिरता हूँ आजकल यहां गलियों के भंवर में।

फूलों सी गमकाई खुशबू भी अब साथ है अपने,
कि बड़ी सादगी के जीया हूँ इस सनातन शहर में।

यहां लोग सभी अपने ना है कोई पराया,
सुख-दुख का है साया रहा हरदम ही सफर में।

हो ना यकीन तुमकों तो कभी आ जाओं घर मेरे,
अल्हड़ सी मस्ती लिये फिरते, सब बनारसशहर में।"

शनिवार, 7 मई 2016

भयावह ख्वाब...

आज फिर डर गया विभत्स्य ख्वाब देख कर,
कि मेरी कलम थी टंगी..
साहूकार के यहां चंद सिक्कों के दाम पर।
फिर क्या,
हांथ भींचे, आंख मीचे, झट से मैं तो उठ गया।
इस ख्वाब की ताबीर पर भी, आंसू भर-भर रो गया।

है क्या इसमें हकीकत ये तो केवल ख्वाब था,
पर इस कल्पना ने ही खयाल सारे धो दिये।
ख्वाब थे पाले मैंने भी क्या, खूब नाम कमाउंगा,
इस शब्दलोक की भूमि पर, धन-धान्य जुटाउंगा।

ख्वाब टूटे, हांथ छूटे, जग सारा बैरी हो गया,
होकर निराश मन, मैं शून्य व्योम में खो गया।
चाह थी जो बसी उच्च शिखर पर जाने की,
उसमें थोड़ी फांस गड़ी और कलम चिरंतन सो गया।

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