हर अधूरे ख्वाब की उम्मीद था मैं,
हर खुशी, हर चाह का पाबंद था मैं,
मैं ख्वाहिशों की हिट लिस्ट में
दर्ज,
सभी की ‘विश’ पूरी करने को जर्द था..
क्योंकि मैं घर का मर्द था...
रोती आखों को हंसाना था,
हर रुठे दिल को मनाना था,
खुशियां बांटकर अपनों में,
मुझे हरपल चलते जाना था,
क्यों... क्योंकि मैं घर का मर्द
था...
मेरे गम मेरी आंखों से बहे ही
नहीं,
कदम लड़खड़ाए जरूर पर थमे ही
नहीं,
मजबूरियां-कमजोरियां मेरे किरदार
के लिए नहीं,
हक की बातें पढ़ी अक्सर, पर कभी
कही ही नहीं,
क्योंकि मैं ही तो घर का मर्द
था...