शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

मेरा अपना चाँद है...


मेरी आंखों में तेरे अक्स का ये चाँद हर पल है,
फिर क्यूं करके मैं दूसरे चाँद का दीदार भी करूं।

हमारे तीज-औ-करवाचौथ तो हर रोज होते हैं,
जब चाहा तुम्हे देखा और पारन हो गया अपना।

यही एक बात तो जहन में आज भी हैं ताजा,
जो तुम हो मेरे तो तुम्हें पाने की क्यूँ मिन्नते करनी।

ये और बातें है कि तुमसे दूरी निगाहे हू-ब-हू के हैं,
तो फिर जाना ये इंटरनेट भी तो बड़े काम आते हैं।

चलो फिर से तुम्हारी याद से, तर आंखों को करते हैं,
कि मौसम हो कोई सा भी, सुकून इससे ही मिलता है।

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