पिंजरे में कैद पंछी ये सोचता रहा
छूना था आसमान पर क्या से क्या हुआ
वीरान जजीरे पे खड़ा देख रहा हूँ
हर ओर अंतहीन समंदर का सिलसिला
हम अपनी सफाई में कभी कुछ न कहेंगे
एक रोज़ वक़्त खुद ही सुना देगा फैसला
लोगो की शक्ल में महज जिस्म बचे हैं
रूहें तो जाने कब की हो चुकी हैं गुमशुदा
जो ज़िन्दगी को जीते रहे अपनी तरह से
ये सिर्फ वही जानते हैं उनको क्या मिला
अच्छा कहा किसी से न किसी से बुरा कहा
मै तो बस आईने की तरह पड़ा रहा
जिसने जैसा चाहा वैसा ही अक्स पाया
रिश्तों को मत बना या मिटा खेल समझ कर
रिश्ते बना तो आखिरी दम तक उसे निभा ....
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