आज माँ सरस्वती की आराधना और धरती माँ की गोद में उभरी फसलों के श्रृंगार का दिन है। आज बसंत पंचमी का पावन दिवस है जिस दिन सभी लोग विद्या की देवी से अपने सुनहरे भविष्य की कामना करते हैं। आज चाहे वो बुद्धिमान हो या फिर मेरे जैसा मुर्ख हर कोई माँ वीणा वादिनी से प्रार्थना करने में लगा रहेगा, की वह उसे वो सब कुछ दे जो उसे समाज के अन्य लोगो से ऊपर कर सके। इस बीच हमारी मांगे भी अपनी हदों को पार कर जाती हैं। विद्या की देवी से बुद्धि और ज्ञान के भंडार का वरदान मांगने के साथ-साथ हम उनसे भौतिक सुख सम्पदा और धन की भी चाह करने लगते हैं।
यह कोई दोष नहीं है बल्कि हमारा भावावेश है कि हम चाहे जिस वास्तु कि खोज कर रहे हो पर जब हम भावनात्मक रूप से लबरेज होते हैं तो हमारी मुख्य मांग अपने आप हमारी जुबान पे आ जाती है। या यूँ कहिये कि हमारी जरुरत या वो कमी जिसकी हमे ज्यादा आवश्यकता है स्वतः ही लबों पे स्फुतिक हो जाती है। अगर आज के समय में लोगो कि धारणा के हिसाब से माँ सरस्वती कि आराधना मंत्र का उच्चारण होगा तो वह शायद ऐसा ही होगा....
''वीणा वादिनी वर दे , बुद्धि का भंडार दे
घर में मिले ऐश हमको, ऐसा कोई उपहार दे
न करे कोई उपेक्षा , हर लब हमको जय दे
धन-धान्य न कभी हमसे रूठे ,
लक्ष्मी से मेरे घर को भर दे,
माँ वीणा वादिनी वर दे......''
यह कोई दोष नहीं है बल्कि हमारा भावावेश है कि हम चाहे जिस वास्तु कि खोज कर रहे हो पर जब हम भावनात्मक रूप से लबरेज होते हैं तो हमारी मुख्य मांग अपने आप हमारी जुबान पे आ जाती है। या यूँ कहिये कि हमारी जरुरत या वो कमी जिसकी हमे ज्यादा आवश्यकता है स्वतः ही लबों पे स्फुतिक हो जाती है। अगर आज के समय में लोगो कि धारणा के हिसाब से माँ सरस्वती कि आराधना मंत्र का उच्चारण होगा तो वह शायद ऐसा ही होगा....
''वीणा वादिनी वर दे , बुद्धि का भंडार दे
घर में मिले ऐश हमको, ऐसा कोई उपहार दे
न करे कोई उपेक्षा , हर लब हमको जय दे
धन-धान्य न कभी हमसे रूठे ,
लक्ष्मी से मेरे घर को भर दे,
माँ वीणा वादिनी वर दे......''
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