शनिवार, 11 जून 2011

शत्रुता भुनाने के लिए क़ानून बनाना अनुचित

भारत में क़ानून बनाने वालों कि स्थिति दयनीय है. कानून सरकार बनाए या न्यायालयों के निर्णय हों, उनका उद्देश्य एक वर्ग को लाभ पहुँचाने के लिए दूसरे पक्ष को दण्डित करना होता है अभी एटा ,उ.प्र. की एक अदालत ने आनर किलिंग में तीन लोगों को मारने के लिए १० लोगों को फांसी कि सजा सुनाई गई है. बड़े- बड़े दंगों और आतंकी हत्याओं के प्रकरण में भी इतने लोगों को फांसी कि सजा नहीं हो पाती है. लड़की को किसी प्रकार पटा लो और शादी कर लो, अब उनके माँ-बाप, रिश्तेदार क्या कर लेंगे? यदि लड़की न माने तो उसको तेजाब से जलाने से लेकर हत्या के प्रयास करो या उनका एस एम् एस बनाकर प्रसारित कर दो. यदि युवकों को पता हो कि घरवालों कि सहमति के बिना विवाह नहीं होगा तो वे इतना आगे बढ़ेंगे ही नहीं . एक आशिक छात्र द्वारा भोपाल में लड़की से बदला लेने के लिए जिस प्रकार उसे और उसकी दो सहेलियों को सरे आम फ़िल्मी ढंग से कार से कुचला गया, न कुचला जाता. असामाजिक लोगों की मांग कि आनर किलिंग के लिए फांसी दो और अदालत का निर्णय, युवकों को लाभ पहुँचाने के लिए तथा उनके माता-पिता तथा रिश्तेदारों को दण्डित करने का एक उदाहरण मात्र है.


यह एक सामाजिक समस्या है. क़ानून के साथ ही ऐसी सामाजिक चेतना भी उत्पन्न की जानी चाहिए कि युवकों को ध्यान रहे कि उनके घरवालों कि सहमति के बिना विवाह मान्य नहीं होगा और अभिभावकों को समझ में आ जाए कि बच्चों की जायज मांग का आदर करना चाहिए तो समाज में वीभत्स घटनाएं रुक सकती हैं.


अनिवार्य एवं निःशुल्क बाल शिक्षा के लिए क़ानून बनाया गया है. उसकी कंडिकाओं का मुख्य उद्देश्य बाल शिक्षा न होकर प्रतिष्ठित निजी विद्यालयों की व्यवस्था को चौपट करना प्रतीत होता है. कुछ निजी स्कूलों में पढ़ाई अच्छी होती है, उनका नाम है, प्रतिष्ठा है. उन्हें दंड देना इसलिए जरूरी हो गया है उनके नाम के सामने सरकारी स्कूलों को कोई पूछ नहीं रहा है. नव वधूओं को दहेज़ के लोभी परेशान न करें, इसके लिए जो क़ानून बनाया गया है उसका दुरूपयोग आधुनिक लड़कियां पति, सास, ससुर, नन्द, जेठ, देवर जैसे सम्बंधियो को जेल भिजवाने या ब्लैकमेल करने में धड़ल्ले से कर रही हैं. कोर्ट समझ भी जाते हैं परन्तु क़ानून किसी को बुद्धि का प्रयोग करने की अनुमति नहीं देता है.


अनुसूचित जातियों को उच्च वर्ण की यातनाओं से बचाने के लिए जो क़ानून बना है उसका भी भरपूर दुरूपयोग किया जाता है. किसी सेवा में यदि उनका उच्चाधिकारी उनके विरुद्ध कोई अनुशासन हीनता के कारण कार्यवाही करना चाहता है तो वे इस नियम का आश्रय लेकर उस अधिकारी को धमकाने या फंसाने में भी नहीं चूकते हैं. इस क़ानून के विरुद्ध उस अधिकारी को कोई सहायता नहीं कर सकता है वह अधिकारी भले ही कितना अच्छा हो .महिलाओं के विरुद्ध पुरुष अधिकारिओं द्वारा कार्यवाही करने पर भी ऐसे हालात उत्पन्न होने की सम्भावना बनी रहती है. इससे शासकीय विभागों की हालत खस्ता होती जा रही है. अनुशासन के अभाव में कामचोरी और भ्रष्टाचार सर्वत्र फैलता जा रहा है. परिणाम स्वरूप सरकार अपने विभागों को सुधारने के कठिन कार्य के स्थान पर उनका निजीकरण करती जा रही है.


आने वाले समय में कलेक्टर, कमिश्नर, सचिव, मंत्री, मुख्यमंत्री, यहाँ तक कि प्रधानमंत्री और न्यायाधीश भी ठेके पर दिए जाने लगें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. हमें भूलना नहीं चाहिए कि ईस्ट इंडिया कंपनी ऐसे ही ठेकों पर देशी रियासतों के राजा-नवाबों को नियुक्त करती थी और जब उनसे मन भर जाता था तो उसे बेदखल करके उनकी रियासत को कंपनी की संपत्ति बना लेते थे. १८५७ का संघर्ष उसी का परिणाम था. आज पुनः देश छोटा होता जा रहा है और लोग बड़े होते जा रहे हैं .इसलिए वे मनमाने ढंग से कार्य कर रहे हैं, उसे कोई भ्रष्टाचार कहे, नाकारा कहे, भूख हड़ताल करे या अपना सिर धुने, बड़े आदमी को कोई फर्क नहीं पड़ता है.


आज कुछ लोग कालाधन रखने वालों तथा भ्रष्टाचारिओं को फांसी देने या आजीवन कारावास देने एवं उनकी सारी संपत्ति जब्त करने की बात कर रहे हैं. आज जब यह सिद्ध हो रहा है कि जज भी भ्रष्ट हैं, पुलिस पर तो पहले से ही किसी को विश्वास नहीं है , तो पकड़े या पकडवाए गए लोगों को सजा कौन और कितने दिनों में दिलवा पायेगा जबकि आज देश कि अदालतों में ढाई करोड़ से अधिक प्रकरण लंबित हैं. इसलिए किसी भी क़ानून को बनवाने या बनाने में यह विचार सर्वोपरि रहनी चाहिए कि उससे न्याय एवं व्यवस्था स्थापित हो, उसका दुरूपयोग करने कि सम्भावना न हों तथा लोगों में परस्पर भ्रातृत्व भाव एवं एकता बनी रहे.


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