चुप खड़े हैं पत्थरों के सामने,
क्या यही हैं दरपनों के मायने,
लोग पूछते नहीं...
क्या पता ठिकाना तुम्हारा,
बस कहते हैं चलता जा,
मंजिल मिल जायेगी सामने।।
भूख है या यूं ही बिलख रहा है कोई,
क्या पड़ी किसी को पूछे रूककर,
बस मुस्कुराहटों की महफिल उन्हें भाती,
खुशियों का सौदा करने का है वो आदती।।
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