Akash Apna Hai
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शुक्रवार, 19 अगस्त 2011
कुछ रोज जी के देखते हैं...
"हौसले ज़िन्दगी के देखते हैं,
चलिए कुछ रोज जी के देखते हैं।
नींद पिछली सदी से ज़ख़्मी है,
और ख्वाब अगली सदी के देखते हैं।
बारिशों से तो प्यास बुझती नहीं,
आईये फिर ज़हर पी के देखते हैं...!
"
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