मैखाने हैं पर आँखों के जाम कहाँ!
कुछ और सबब होगा उसकी बेचैनी का,
रखता है सर मेरे वो इल्जाम कहाँ!
समझाएं कैसे दिल के आईने को,
नाम हुआ है मेरा, मै बदनाम कहाँ!
करते हो हर बार शिकायत क्यों बेजा,
नहीं हो मीरा जब तुम, मै श्याम कहाँ!
ढूंढ़ रहा है खुद को ही जाने कब से,
बनारस में अब रहता है 'आकाश' कहाँ..!"
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