बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

समाज का आईना अब सामाजिक बदलाव को जागरूक

कहने को तो फिल्मे समाज का आईना होती हैं . परदे पर वही कहानी दिखाई जाती है जो वास्तविकता में इंसानों के जीवन में घटित होती है कभी-कभी ऐसा लगता है की परदे पर प्रस्तुत हो रहा व्यक्तित्व किसी भी प्रकार से आम लोगों से मेल नहीं खता। क्या कभी ऐसा देखा गया है की हालिया हित फिल्म ‘3 idiot’ के किरदार रेंचो की तरह किसी ने इंजीनियरिंग कॉलेज में अपने तेअचेर की नाक में दम किया हो और उसे कॉलेज से निकला ना गया हो , क्योंकि वो किसी रसूखदार घर से ताल्लुक रखता है । जबकि वास्तविक जीवन में ऐसा होने की स्तिथि में तुरंत कॉलेज से फरमान जारी होता है और छात्र का पुलिंदा बांध जाता है।


ठीक इसी प्रकार रण फिल्म में भी एक ससेने दिखाया जाता है की एक मीडिया परसों जो की एक राजनीतिक हस्ती से भी ज्यादा प्रमुख है । जिसकी एक रिपोर्ट ने सर्कार बना दी और फिर गिरा दी । मन मीडिया में करिश्माई ताकतें हैं पर क्या इतना खरा स्वरुप किसी सामजिक इंसान का है … तो इसका एक ही जवाब मिलेगा की नहीं । लेकिन यह एक प्रयास है की किसी भी तरह से सामाजिक तंत्रों में सकारात्मक परिवर्तन की बयार लायी जाए । तभी तो विधु विनोद चोप्रा और हिरानी जी ने पढाई के सही तरीके को जहाँ आगे बढ़ाते हुए कामयाबी से ज्यादा काबिलियत को तवज्जो दी , वहीँ राम गोपाल वर्मा ने अमिताभ बच्चन जैसे शशक्त कलाकार को परदे पे उतार कर मीडिया के लिए सही दिशा में आगे आने का मार्ग दिखाया ।


अक्सर ऐसा होता है की मसाला फिल्मो से अलग किसी सन्देश को लेकर प्रचारित होती फिल्मे फ्लॉप हो जाती हैं पर उसका सन्देश पूर्णतः बेकार जाए ऐसा कभी नहीं होता । तभी तो सभी प्रकार के ड्रामे के साथ हसी-मजाक में आमिर ने मन की सुनकर कैरीअर बनाने की बात कही और लोगो ने इसे सराहा । विजय हर्षवर्धन मालिक के किरदार ने भी सार्थक पत्रकारिता की लड़ाई लड़ी , जिसकी मशाल पूरब शास्त्री (रितेश देशमुख ) जैसे युवा के हाथो में थमा दी ताकि जर्नलिज्म को सही दिशा में ले जाने के लिए युवा उत्तरदाई बने ना की टीरपी को लक्ष्य बनाये ।


इस प्रकार ये साबित हो गया की अब हमारा सिल्वर स्क्रीन मसालों की तड़क भड़क के बीच समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता के साथ भी अपने कदम बाधा रहा है। जो शायद आने वाले भविष्य में हमारी नई पीढ़ी को नया तजुर्बा सिखाये।

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