बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

संवादों ने जीता दिल …. शायद आत्मा भी जगाई


गलती का मौत दंड है , रण है …..

यह फिल्म रण के एक गीत की वह पंक्ति है जो कहानी के अनुसार मीडिया की महत्ता को दर्शाती है की अगर मीडिया ने गलती की तो मतलब सब ख़तम। वैसे तो फिल्म में कई ऐसी खासियते हैं जिन्हें अगर हम आत्मसात करे तो हमारा नैतिक विकास ही होगा । उनमे से कुछ खास संवाद निम्न हैं -


1- कुछ चुनिन्दा अवसरवादी लोगो की कट्टरपंथी सोच का नाम ही कौमी नफरत है

इस संवाद ने शायद सभी को एक बार तो यह सोचने को मजबूर कर ही दिया होगा की ये वाकई सच है । और उस पल हमारे मन की साड़ी कद्वाहते ख़तम हो गयी होंगी ।


2- कोई हिन्दू-मुस्लिम नहीं होता बस लोग होते हैं अपने-अपने तरीके से जीवन जीना ही धर्मं है

यह संवाद विचारों की मंथन चासनी में काफी पाक कर ही कागज़ पर आया है । लेखक भी अक्सर सोचता रहता होगा की आखिर ये धर्मं है क्या ? क्या दो लोगो के बीच विषमता की परिभाषा ही धर्मं है ?


अगर किसी भी धर्मं या जाती के दो लोगो को आपस में बदल कर एक-दुसरे के स्थान पर रखा जाएऔर सारे काम उन्हें दुसरो की तरह करने हो तो भला कौन कह पायेगा की अब वह हिन्दू-मुस्लिम याकिस अन्य जाती का है बल्कि वह सिर्फ एक इंसान है, हाड-मांस का बना जो हमारी-आपकी तरहकेवल खुद का पेट पालने के लिए काम करता है उसे ना तो दुनियादारी की चिंता है ना किसीधर्मं-जाती की , वह बस काम करता है और अपने मालिक से चाहे वह हिन्दू हो या मुस्लमान अपनीमजदूरी ले घर को आता है

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