शनिवार, 17 दिसंबर 2011

क्रिकेट खेल है जंग नहीं

-सर डॉन ब्रैडमैन व्याख्यान में छा गये द्रविड़।

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर सर डान ब्रैडमैन से बड़ा दूसरा खिलाड़ी नहीं हुआ, वर्ष 2000 से ऑस्ट्रेलिया में उनकी स्मृति में ब्रैडमैन व्याख्यान का आयोजन किया जाता रहा है। इस आयोजन में क्रिकेट व अन्य क्षेत्रों की विभूतियां सर डान ब्रैडमैन व क्रिकेट के विषय पर अपने विचार व्यक्त करती हैं।

इस वर्ष के ब्रैडमैन व्याख्यान में पहली बार किसी विदेशी क्रिकेट खिलाड़ी के रूप में भारत के राहुल द्रविड़ को इस संबोधन का सम्मान दिया गया।14 दिसंबर 2011 को ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा में आयोजित इस व्याख्यान में राहुल द्रविड़ ने क्रिकेट के अलावा विश्व इतिहास, समाज, संस्कृति व मानव शास्त्र में अपनी बारीक समझ का प्रमाण भी दिया। राष्ट्रीय युद्ध स्मारक प्रांगण जैसे आयोजन स्थल की गरिमा के अनुरूप युद्ध की गंभीरता को समझने वाले राहुल द्रविड़ ने किसी क्रिकेट मैच के वर्णन के लिए युद्ध, जंग या महासंग्राम जैसे वजनी शब्दों के उपयोग को निर्थक बताया।

इतिहास के अच्छे जानकार की तरह द्रविड़ ने भारत-ऑस्ट्रेलिया के सैन्य सहयोग का भी उल्लेख किया, जो 20वीं सदी के दोनों विश्व युद्धों के दौरान भारत व ऑस्ट्रेलिया ने बनाये थे। द्रविड़ ने स्वाधीनता पूर्व भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध सर डान ब्रैडमैन के क्रिकेटीय करिश्मे से भारतीयों के भावनात्मक जुड़ाव का जिक्र किया और यह भी कहा कि उस समय सारे भारतीय सर डान ब्रैडमैन को एक प्रकार से अपना प्रतिनिधि ही समझते थे। भारतीय क्रिकेट के एक बेहतरीन ब्रांड अंबेसडर राहुल द्रविड़ ने पिछले 25 सालों में भारत में क्रिकेट प्रतिभा के व्यापक फ़ैलाव और छोटे-छोटे कस्बो-शहरों से नये खिलाड़ियों के टीम में आने के अनेक उदाहरण दिये। द्रविड़ ने भारत के क्रिकेट खिलाड़ियों के सिर चढ़े व अति धनाढ्य होने को भी अतिशयोक्ति बताया।

द्रविड़ ने सबसे ज्यादा तारीफ़ भारतीय क्रिकेट प्रशंसकों को दी, द्रविड़ के अनुसार भारत के क्रिकेट प्रशंसक अपनी टीम व क्रिकेट खेल को बेहद प्यार देते हैं। हर भारतीय क्रिकेटर अपने कैरियर के दौरान यह समझ जाता है कि भले ही क्षणिक आवेश में कुछ लोग अप्रिय स्थिति पैदा कर दें, किंतु अधिकतर भारतीय प्रशंसकों की भावनाएं टीम के साथ जुड़ी हुई हैं। भारतीय क्रिकेटर के लिए यह खेल रोजगार का साधन मात्र नहीं है बल्कि यह अपने जीवन का सदुपयोग करने का अवसर है, ऐसा अवसर कितने लोगों को मिल ही पाता है? राहुल द्रविड़ ने भारतीय खिलाड़ियों के मानवीय पक्ष को जिस रूप में जिया है ठीक उसी रूप में उसे प्रस्तुत भी किया। अखिल विश्व में अपने पंगु नेतृत्व व भ्रष्ट संचालन के लिए बदनाम बीसीसीआइ को भी कूटनीतिज्ञ द्रविड़ ने सराहा और भारत में क्रिकेट के प्रसार में इस बोर्ड के प्रयासों का जिक्र किया। इस संबोधन के दौरान राहुल द्रविड़ ने किसी बेहद कुशल रणनीतिकार की भांति ही अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के सुरक्षित भविष्य के लिए एक नयी कार्यनीति का प्रतिपादन भी किया।

राहुल द्रविड़ ने क्रिकेट अधिकारियों व खिलाड़ियों को क्रिकेट प्रशंसकों के प्रति अपनी जवाबदेही की ओर सजग होने को कहा और हर अंतरराष्ट्रीय दौरे में जबरन ठूंसे हए अनेक एक दिवसीय व 20- ट्वेंटी मैचों की संख्या घटाने को कहा। टेस्ट मैच को क्रिकेट की सर्वोच्च प्रतिस्पर्धा बताने वाले द्रविड़ ने खुले तौर पर कहा कि गैर जरूरी एक दिवसीय या 20- ट्वेंटी मैचों के चलते ही मैदान में दर्शकों की संख्या बेहद कम हो गयी है। टेस्ट में और दर्शकों को लाने के लिए द्रविड़ ने रात-दिन के टेस्ट खेलने की भी वकालत की। राहुल ने क्रिकेट की स्थिति बनाये रखने के लिए टेस्ट पर सबसे ज्यादा ध्यान देने को कहा, एक दिवसीय मैचों को वर्ल्ड कप या चैंपियन ट्राफ़ी जैसी प्रतियोगिताओं के लिए उपयुक्त बताया जबकि 20-ट्वेंटी को राष्ट्रीय स्तर पर सीमित रखने को कहा। राहुल के अनुसार क्रिकेट के तीनों प्रारूप साथ-साथ रह सकते है किन्तु जैसे अभी चल रहे है वैसे नहीं।

राहुल द्रविड़ के भाषण का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा खेल में बेईमानी और मैच फ़िक्सिं ग को रोकने के बारे में था। द्रविड़ ने खिलाड़ियों से और कड़े परीक्षणों व नियमों को स्वीकार करने को कहा। राहुल द्रविड़ ने इस खेल की शुचिता के लिए क्रिकेट खिलाड़ियों से कुछ असुविधाओं व अपनी निजी जानकारी प्रदान करने को तैयार रहे को भी कहा। द्रविड़ ने क्रिकेट की आय बढ़ाने के के नये तरीकों की आवश्यकता स्वीकार की किन्तु साथ ही क्रिकेट की गौरवशाली परंपरा को बनाये रखने की अपील भी की। राहुल द्रविड़ का व्याख्यान ठीक उनकी बल्लेबाजी की तरह शास्त्रीय शैली में दिया गया स्पष्ट भाषण था। ऑस्ट्रेलिया के स्थानीय समाचार माध्यमों में राहुल द्रविड़ के इस संबोधन को ब्रेडमैन व्याख्यान में अब तक दिये गये सभी भाषणों में से सर्वश्रेष्ठ माना गया है। क्रिकेट मैदान के ‘श्रीमान भरोसेमंद’ द्रविड़ ने अपने संबोधन से यह साबित किया कि इस ‘भारतीय दीवार’ की बौद्धिक योग्यता और सैद्धांतिक मान्यताओं की नींव कितनी गहरी और कितनी मजबूत है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Pages