रविवार, 25 दिसंबर 2011

“मां तू होती तो…”

नींद बहुत आती है पढ़ते-पढ़ते है,
मां होती तो कह देता, एक प्याली चाय बना दो ।

थक गया जली रोटी खा-खा कर,
मां होती तो कह देता पराठे वना दो ।

भींग गई आंसुओं से आंखे मेरी,
मां होती तो कह देता आंचल दे दो ।

रोज वही कोशिश खुश होने की,
मां होती तो मुस्कुरा लेता ।

देर रात हो जाती है घर पहुँचते-पहुँचते,
मां होती तो वक्त से घर लौट जाता ।

सुना है कई दिनों से वो भी नहीं मुस्कुराई,
ये मजबूरियां न होती तो घर चला जाता ।

बहुत दूर निकल आया हुँ घर से अपने,
जो तेरे सपनों की परवाह न होती...
... बस चला आता ।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Pages