क्रिकेट के खेल को भारत में इबादत से कम का दर्जा हासिल नहीं है। हर भारतवासी क्रिकेट के लिए जीवन के सभी जरुरी कामों से तौबा करने को तैयार हो जाता है लेकिन मजाल हो कि खेल का एक लम्हा भी उससे छूट जाये। ऐसे में अगर खेल के प्रसंशक अपने पसंदीदा खिलाड़ियों से सजी टीम से खिताब जीतने की उम्मीद करते हैं तो इसमें बुरा क्या है। पर खेल तो आखिर खेल है जो घरों व स्टेडियम में बैठे दर्शकों-प्रसंशकों की ख्वाहिशों से परे मैदान पर बेहतर प्रदर्शन को ही मानता है। इसी लिए शायद एक बार फिर भारतीय क्रिकेट टीम को खिताब से महरुम रहना पड़ा क्योंकि उसके खेल कौशल में कुछ कमियां रह गयी। यहां बात हो रही है महिला क्रिकेट विश्वकप की जिसकी मेजबानी करने के बाद भी भारतीय टीम अपने ही जमीन पर खिताब कब्जाने में नाकामयाब रही।
क्रिकेट, जिसे
अनिश्चितताओं का खेल कहा जाता है जिसमें हर पल रोमांच का पुट होता है और खेल किसी
भी क्षण अपने वर्तमान स्थिति से बदल सकता है। हर पल बदलने की फितरत वाले इस खेल का
ही तो कमाल है कि जिस टूर्नामेंट का आगाज भारतीय टीम ने वेस्टइंडीज को करारी
शिकस्त देते हुए किया था, उसी से वह बाहर हो गयी है। हालांकि अपने गौरव को बचाने
के क्रम में भारतीय टीम ने अपने आखिरी मुकाबले में चिर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान को
जरुर पटखनी दी। जिससे वह टूर्नामेंट में सांतवा स्थान हासिल करने में कामयाब रही
लेकिन यह प्रदर्शन सवा अरब भारतीयों की उम्मीदों पर खरा उतरने का काबिल नहीं है।
और हो भी कैसे जिस खिताब के लिए देशवासी इंतजार कर रहे है वह अपनी जमीं पर भी लूट
गया।
यह कोई पहला मौका
नहीं है जब भारतीय महिला क्रिकेट टीम खिताब को जीतने से रह गयी हो। बल्कि पिछले 30
वर्षों और 10 विश्वकप प्रतियोगिताओं (वर्ष 2013 को लेकर) में एक बार भी
विश्वविजेता नहीं बन सकी है। विश्वविजेता तो दूर भारतीय टीम सिर्फ एक बार विश्वकप
के फाइनल (वर्ष 2005, आस्ट्रेलिया के खिलाफ) में खेल पायी है। इस बार तो टीम की
हालत पूर्व की सालों से और भी बदतर थी। टीम के लिए इस विश्वकप में सबसे सुखद बात
यह रही कि चार लीग मैचों में से तीन में उसके एक बल्लेबाज ने शतक जरुर लगाया। जहां
पहले मुकाबले में वेस्टइंडीज के खिलाफ कामिनी ने 100 बनाये तो वहीं इंग्लैंड के खिलाफ
हरमनप्रीत कौर ने भी शतक ठोका। जबकि आखिरी मुकाबले में पाकिस्तान के खिलाफ कप्तान
मिताली राज ने भी नाबाद 134 रन की पारी खेली।
पूरे टूर्नामेंट में
भारतीय टीम की सबसे कमजोर कड़ी साबित हुई उसकी गेंदबाजी। टीम के पास अनुभवी और
दुनिया की सबसे तेज गेंदबाज झूलन गोस्वामी के अलावा अमिता शर्मा, निरंजना और एकता
बिष्ट जैसे नाम थे। जिन पर टीम के गेंदबाजी का भार था लेकिन सभी गेंदबाज जरुरत के
समय बेकार साबित हुए। उस पर रही सही कसर टीम की फिल्डिंग ने पूरी कर दी। इस प्रकार
के ओवरआल औसत प्रदर्शन के बल पर ही भारतीय टीम टूर्नामेंट में सातवें स्थान पर
काबिज रही। इन चार मैचों ने भारतीय टीम को केवल प्रतियोगिता से बाहर नहीं बल्कि
करोड़ों क्रिकेट प्रसंशकों की उस उम्मीद पर भी पानी फेर दिया जिन्हें आस थी कि शायद
इस बार भारतीय टीम विश्वकप जीत कर नयी कीर्तिमान रचेगी। आखिर लोगों को उम्मीद हो
भी क्यों ना, पुरुष क्रिकेट टीम ने भी वर्ष 2011 का विश्वकप खिताब अपनी जमीन पर
खेलते हुए ही जीता था। पर कहते हैं ना कि खेल को केवल भाग्य से नहीं बल्कि जज्बें
के सहारे खेलना चाहिए। यह खेल जज्बे और भाग्य के संतुलित मेल के आधार पर बुलंदी पर
जाने का मार्ग प्रशस्त करता है।
खैर भारतीय टीम बाहर
हो चुकी है और अब अटकलें इस बात पर लगायी जा रही हैं कि कौन सी टीम वर्ष 2013 का
विश्वकप खिताब अपने नाम करने में कामयाब होगी। अब तक के बीते नौ विश्वकप
प्रतियोगिता के आंकड़ों के मुताबिक आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के बीच ही खिताबी
मुकाबले के आसार हैं। पर क्रिकेट का खेल आंकड़ों की जादूगरी से ज्यादा उस दिन
मैदान पर टीम के प्रदर्शन पर टिका होता है। ऐसे में किस टीम के सर जीत का ताज होगा
यह कहना जल्दबाजी होगी। वैसे अब तक के प्रतियोगिताओं में आस्ट्रेलियाई टीम पांच
बार इस ताज को पहन चुकी है, जबकि इंग्लैड ने तीन बार इसे अपने सिर पर सजाया है।
वहीं न्यूजीलैंड को भी एक बार इस कप को अपने घर ले जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ
है।
तीनों एशियाई टीमों
भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका के टूर्नामेंट से बाहर होने के बाद यह तो यह हो गया
है कि यह खिताब एशिया में नहीं आने वाला। ऐसे में लोगों की उम्मीदें थोड़ी मायूसी
के साथ अगले महिला विश्वकप तक के लिए टल गयी हैं पर इत्तेफाक की बात ये ही कि यह
उम्मीद मरी नहीं है। क्रिकेट का खेल ही ऐसा है कि हर रोज एक नहीं ताजगी और नये
लक्ष्य के साथ इसे खेलने, देखने और आनन्द उठाने के लिए लोग मजबूर हो जाते हैं। इसीलिए
भारतीय प्रसंशकों को नये आस और विश्वास के साथ कि भारतीय महिला टीम विश्व विजेता बनेगी
के साथ अगली बार का इंतजार रहेगा।
-- आकाश कुमार राय
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