गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

होली और राजनीति

होली का अवसर है देखो, सबपे चढ़ा है भंग,
गोरे-काले सभी चेहरों पर पुता हुआ है रंग..
कोई सफेदा चेहरा लेकर मन की कालिख धोले,
तो कोई रंगबोर शक्ल में, मन की गांठे खोले..

राजनीति का दांव है देखो लोकसभा पर आया,
कोई कांग्रेस, कोई केजरी, कोई सपा का लगा रहा जयकारा,
तो कहीं बिसात पर बिछी हुई है थर्ड फ्रन्ट की गोली,
पर इन सब पर भारी यारों, नमो-नमो की टोली..

जंग छिड़ी काशी में भइया अबकी पार लगइयों,
ना जीता जो कोई सरीखा, तो फिर मुजफ्फर होइयो,
भय के कोपल में भी उनपर सबका विश्वास टिका है,
कि जिसका सफ़र सोम से काशी में आकर रुका है..


अब एक बंद उन वीरों के लिए जिन्हें इतिहास रचना है....
भंग के रंग में मलंग चाल देखो,
काशी के छोरों की मतंग ढ़ाल देखो,
होइहैं जो ऊंहा सब, उनके हाथ होगा,
एही बात जान के बनारसी मस्त होगा..

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