इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं
होता, इस बात की पुष्टि सभी धर्मों और उनके
पवित्र पुस्तकों में भी होती है और जो इसे मानने वाला ही वास्तव में इंसान कहलाता
है। भारत एक धार्मिक देश है और यहां समय-समय पर कई धर्म
गुरुओं ने अपनी शिक्षा से मानवता की सेवा करने का संदेश दिया है। ऐसे ही एक धर्म
गुरु हैं गुरु नानक देव जी जो सिखों के प्रथम गुरू थे।
लाहौर से 30 मील पश्चिम में
स्थित तलवंडी नामक स्थान पर संवत् 1526 (ईस्वी सन 1469) की कार्तिक पूर्णिमा के
दिन उदित हुए एक सूर्य ने अपनी ऐसी किरणें बिखेरीं कि वह भारत ही नहीं विश्व भर
में धर्म अध्यात्म, मानवता और स्वाभिमान का अग्रदूत
बन गया। तलवंडी नगर (वर्तमान में इसे ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है) के
प्रधान पटवारी कल्याण दास मेहता (कालू खत्री) के यहां गुरु नानक देव जी का जन्म
हुआ। उनकी माता का नाम तृप्ता देवी तथा बडी बहिन का नाम नानकी था। अत: नानकी के
छोटे भाई होने के कारण नवजात बालक का नाम नानक रखा गया। बचपन में जब गुरु नानक देव
जी स्थानीय पंडित के पास पढ़ाई करने नहीं गए, तो उनके
पिता ने उन्हें गाय-भैंसें चराने के लिए जंगल में भेज दिया। जंगल में जाकर
गाय-भैंसें चरते-चरते स्थानीय जमीदार राय बुलार के खेतों में घुस गए और थोड़ी ही
देर में सारे खेत चट कर गए। राय बुलार को गुस्सा आया और उन्होंने आदमी भेजकर कालू
मेहता को बुलवाया। कालू मेहता और नानकी देवी, जो कि
उनकी बड़ी बहन थीं, अपने नानक की इस करतूत से बहुत खफा
हुए और उन्हें ढूंढने के लिए जंगल में निकल पड़े। जंगल में जाकर देखा कि नानक जी
एक मेड के सहारे लेटे हुए ध्यान मग्न हैं और एक काला कोबरा उनके पीछे से आकर फन
फैलाए हुए चेहरे पर छाया किए सामने है। जैसे ही कालू मेहता और नानकी वहां पहुंचे
सांप अन्तरध्यान हो गया। घर वालों को उस दिन पता लगा कि नानक दैवी शक्ति से युक्त
कोई अवतारी सन्त हैं।
गीता में भगवान श्री कृष्ण ने
कहा है कि जब भी संसार में अनाचार फैलता है, अवांछित तत्वों से साधारण जन परेशान हो जाते हैं, तब समाज को दिशा देने के लिए किसी न किसी महापुरुष का पदार्पण होता है।
उन्हीं महान आत्माओं में से एक थे गुरु नानक देव। समाज में समानता का नारा देने के
लिए उन्होंने कहा कि ईश्वर हमारा पिता है और हम सब ही उसके बच्चे हैं। पिता की
निगाह में छोटा-बड़ा कोई नहीं होता। वही हमें पैदा करता है और वही हमारा पेट भरने
के लिए अन्न भेजता है। इसी प्रकार गुरु नानक भी जात-पात के विरोधी थे। उन्होंने
समस्त हिन्दू समाज को बताया कि मानव जाति तो एक ही है, फिर
जाति के कारण यह ऊंच-नीच क्यों? गुरु नानक देव जी
ने कहा कि तुम मनुष्य की जाति पूछते हो, लेकिन जब
व्यक्ति ईश्वर के दरबार में जाएगा तो वहां जाति नहीं पूछी जाएगी। सिर्फ उसके कर्म
देखे जाएंगे। इसलिए आप सभी जाति की तरफ ध्यान न देकर अपने कर्मों को दूसरों की
भलाई में लगाओ।
बचपन से ही बालक नानक साधु
संतों, गरीब व असहायों की सेवा व
सहायता के लिए तत्पर रहते थे। गुरु नानक देव जी का सम्पूर्ण जीवन और उनकी शिक्षाएं
विश्व के लिए एक अमूल्य निधि और जीवन जीने का मूल मंत्र बना। नानक सच्चे दिल के
थे। बारह वर्ष की आयु में ही उनका विवाह सुलक्षिणी देवी से करा दिया गया जिनसे
श्रीचन्द और लक्खी दास नामक दो पुत्र उत्पन्न हुए किन्तु सांसारिक बंधन उन्हें बाध
न सके। उन्होंने गुरू की गद्दी पर अपने किसी परिजन को न बिठा कर उसके योग्य अपने
एक साथी लहणा को बिठाया था जिसके संस्कार बड़े ऊंचे थे। ये लहणा भाई जी ही आगे
चलकर गुरू अंगद देव जी के नाम से सिखों के दूसरे गुरू कहलाए। सिख सम्प्रदाय के
प्रवर्तक गुरु नानक जी की सम्पर्ण काव्यमय वाणी गुरु ग्रन्थ साहिब के जपुजी साहिब
खण्ड एक के मुताबिक, कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही सिखों के
आदि गुरु सन्त श्री नानक देव जी की जयन्ती और प्रकाश पर्व मनाया जाता है। इन्होंने
लगभग 974 शब्द और 19 राग लिखे हैं। उनके सभी शब्द और राग अनन्त भक्तिमय हैं और
निराकार परमेश्वर की तरफ ध्यान आकर्षित करते हैं। गुरुवाणी के शुरू में उन्होंने
सबसे पहले जो दोहा लिखा है वह इस प्रकार है-
ओम् सति नामु करता
पुरखु निरभउ निरवैरू।
अकाल मूरति अजूनी
सैभं गुरु प्रसादि।।
अर्थात ओमकार रूपी परमेश्वर का
एक ही नाम है और यही सत्य है। वह सम्पूर्ण सृष्टि का करता पुरुष है। यह ब्रह्माण्ड
उसी परमेश्वर के इशारे पर चल रहा है। वह निर्भय है, उसका किसी से वैर नहीं है। उसकी कोई मूर्ति नहीं है, उसका कोई रूप या आकार नहीं है। वह अजन्मा है, अर्थात
परमात्मा योनि और जन्म-मरण से रहित है। और उस परमात्मा को पाना गुरु की कृपा पर ही
निर्भर करता है।
एक ओंकार सतनाम
नानक बचपन से ही प्रतिदिन
संध्या के समय अपने मित्रों के साथ बैठकर सत्संग किया करते थे। उनके प्रिय मित्र
भाई मनसुख ने सबसे पहले नानक की वाणियों का संकलन किया था। कहा जाता है कि नानक जब
वेईनदी में उतरे, तो तीन दिन बाद प्रभु से
साक्षात्कार करने पर ही बाहर निकले। ज्ञान प्राप्ति के बाद उनके पहले शब्द थे- एक
ओंकार सतनाम। नानक देव जी अपनी गुरुवाणी जपुजी साहिब में कहते हैं कि नानक
उत्तम-नीच न कोई! अर्थात ईश्वर की निगाह में सब समान हैं। यह तभी हो सकता है, जब व्यक्ति ईश्वर नाम द्वारा अपना अहंकार दूर कर लेता है। गुरु नानक साहब
हिंदू और मुसलमानों के बीच एक सेतु थे। हिंदू उन्हें गुरु और मुसलमान पीर पैगम्बर
के रूप में मानते हैं। भक्तिकालीन हिन्दी साहित्य के अनुसार गुरु नानक देव जी एक
रहस्यवादी संत और समाज सुधारक थे। जीवन भर देश विदेश की यात्रा करने के बाद गुरु
नानक अपने जीवन के अंतिम चरण में अपने परिवार के साथ करतापुर बस गए थे। गुरु नानक
ने 25 सितंबर, 1539 को
अपना शरीर त्यागा। जनश्रुति है कि नानक के निधन के बाद उनकी अस्थियों की जगह मात्र
फूल मिले थे. इन फूलों का हिन्दू और मुसलमान अनुयायियों ने अपनी अपनी धार्मिक
परंपराओं के अनुसार अंतिम संस्कार किया।
गुरु नानक देव जी
की शिक्षाएं
गुरु नानक देव जी की शिक्षाओं
में मुख्यत: तीन बातें हैं। पहला जप यानी प्रभु स्मरण, दूसरा कीरत यानी अपना काम करना और तीसरा जरूरतमंदों की
मदद। गुरु नानक की शिक्षा में सबसे बड़ी बात यह थी कि उन्होंने हमेशा लोगों को
प्रेरित किया कि वह अपना काम करते रहे। उनके अनूसार, आध्यात्मिक
व्यक्ति होने का यह अर्थ नहीं है कि व्यक्ति को अपना काम-धंधा छोड़ देना चाहिए।
लंगर
गुरु जी ने अपने उपदेशों को
अपने जीवन में अमल में लाकर स्वयं एक आदर्श बन सामाजिक सद्भाव की मिसाल कायम की।
इसी कारण जात-पात को समाप्त करने और सभी को समान दृष्टि से देखने के भाव से ही
अपने अनुयायियों के बीच लंगर की प्रथा शुरू की थी। जहां सब छोटे-बड़े, अमीर-गरीब एक ही पंक्ति में बैठकर भोजन करते हैं। आज भी
दुनिया भर के तमाम गुरुद्वारों में उसी लंगर की व्यवस्था चल रही है, जहां हर समय हर किसी को भोजन उपलब्ध होता है। इसमें सेवा और भक्ति का भाव
मुख्य होता है।
संगत
जातिगत वैमनस्य को खत्म करने के
लिए गुरू जी ने संगत परंपरा शुरू की। जहां हर जाति के लोग साथ-साथ जुटते थे, प्रभु आराधना किया करते थे। कथित निम्न जाति के समझे
जाने वाले मरदाना को उन्होंने एक अभिन्न अंश की तरह हमेशा अपने साथ रखा और उसे भाई
कहकर संबोधित किया। इस प्रकार तत्कालीन सामाजिक परिवेश में गुरु जी ने इस
क्रांतिकारी कदमों से एक ऐसे भाईचारे को नींव रखी जिसके लिए धर्म-जाति का भेदभाव
बेमानी था।
गुरुनानक देव जी के
दस उपदेश :-
1- ईश्वर एक है।
2- सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो।
3- ईश्वर सब जगह और प्राणी मात्र में मौजूद है।
4- ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता।
5- ईमानदारी से और मेहनत कर के उदरपूर्ति करनी चाहिए।
6- बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं।
7- सदैव प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा
मांगनी चाहिए।
8- मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से ज़रूरतमंद को भी कुछ
देना चाहिए।
9- सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं।
10- भोजन शरीर को ज़िंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ-लालच व
संग्रहवृत्ति बुरी है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें