मंगलवार, 19 जनवरी 2016

मैं बस कागजों पर अहसास लिखता हूँ..


ना कवि, ना लेखक, ना ही इतिहासकार हूँ...
जीवन है अबूझ पहेली, उसके कुछ पल लिखता हूँ..
ना लिखता हूँ शायरी.. ना दोहों की करता बातें..
गुजरे उम्र का.. कागजों पर अहसास लिखता हूँ।

यादों के मर्म की बस.. कुछ बात लिखता हूँ..
कुछ उलझे हुए से अपने हालात लिखता हूँ..
जीवन उलझा जिनमें वो बेतरतीब सवाल लिखता हूँ..
और फिर कुछ उनके बेवजह से जवाब लिखता हूँ..
.... मैं बस कागजों पर अहसास लिखता हूँ..

जो बिगड़ गयी कुछ बात, उसकी याद लिखता हूँ..
कभी-कभी तुम संग बिते पलों का हिसाब लिखता हूँ..
तो कभी तुम बिन जागती रातों का खयाल लिखता हूँ..
फिर बिन तुम्हारें खाली पलों का मलाल लिखता हूँ..
.... मैं बस कागजों पर अहसास लिखता हूँ..

कुछ हारे कल का पल लिखता हूँ..
कुछ जीत का आने वाला कल लिखता हूँ..
कुछ जीने की आस लिखता हूँ..
कुछ मरे हुए जज्बात लिखता हूँ..

.... मैं बस कागजों पर अहसास लिखता हूँ..

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