"सुबह रहो, शाम रहो और रात को रहो,
तुम हर वक्त मेरी हर एक बात में रहो।
मुझको डराती हैं ये वक्त-बेवक्त की आंधियां,
तुम हर घड़ी, हर पल बस मेरे साथ में रहो।
गर कभी बिखरू, तो भी कोई गम नहीं मुझे,
संभलू जो गर कभी तो तुम्हीं याद में रहो,
ये तन्हाइयां-रुसवाइयां मुझे कब तक सताएंगी,
मैं सब सहूंगा, जो तुम सिलसिला-ए-मुलाकात में रहो।"
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