हम और आप सिर्फ कहते है और सिर्फ कहते ही है कि हमारी सरकार नाकाम है, निकम्मी है, कामचोर है, कुछ नहीं करती है, यहां कानून कोई मायने नहीं रखता है। कानून रसूखदारों और सत्तासीनों की रखैल से ज्यादा कुछ नहीं है। जल बोर्ड का पानी घर की बजाय नालियों में जाता है। नगर निगम सफाई नहीं करता है। फोन महिनों ठप्प पड़े रहते है। सड़के टूटी पड़ी रहती है लेकिन कागजों में सेंकड़ों बार बन जाती है। ट्रेनों के आने जाने का समय हमें सदी का सबसे बड़ा मजाक लगता है। हम सिर्फ कहते है और सिर्फ कहते है।
लेकिन जब हम और आप विदेश जाते है तो सिगरेट के ठूंठों को लंदन की सड़कों पर नहीं फेंकते है। न्यूयोर्क की सड़कों पर गलत साइड चलाने पर ट्रेफिक के हवलदार को ‘जानता नहीं मैं फलां का साला हू’ की धमकी नहीं देते। रोम की दीवारों पर भी खैनी खाकर नहीं थूकते। जबकि अपने देश में हम इंतजार कर रहे है किसी मिस्टर, मिस एंड मिसेज सुपर क्लीन का। क्या यह संभव नहीं है कि हम खुद ही कुछ छोटा-छोटा सा, थोड़ा- थोड़ा सा योगदान दे दें? यदि आपका जवाब हां है तो पहल कीजिए अपने आप से। ताकि बना सकें एसा समाज जैसा हम चाहते है। संस्कार अपने बच्चों को देना चाहते है, क्योंकि जैसा आज आप बोएगें, कल वैसा ही अपने बच्चे काटेगें।
hello akash je
जवाब देंहटाएंaap ke lekhini me dam hai.. mai bhi kuch aap ke tarha he banana chata hu...