वो कैसा शख्स है की हर रोज सजा देता है
फिर हंसाता है वो इतना की सब भुला देता है
कभी जो रो दे तो मुझ को भी भूल जाता है
और फिर भूल के मुझ को भी रुला देता है
हमारे पास न आने की क़सम खा कर वो
“आजा ” लिखता है वो कागज़ पे उड़ा देता है
उससे पूछो की बताये किससे मुहब्बत है तुम्हें
नाम सरगोशी में मेरा ही सुना देता है
कभी कहता है चलो साथ हमेशा मेरे
चल पड़े साथ तो रास्ता ही फिरा देता है
खुद ही कहता है न दोहराओ पुरानी यादें
मैं न दोहराऊँ तो फिर खुद ही सुना देता है
खुद ही लिखता है की जज़्बात में हलचल ना करो
और फिर खुद ही नयी आग लगा देता है …!!!
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