मंगलवार, 19 जनवरी 2010

क्या ये दर्द भी दिखावटी है?



क्यों आत्मा जब शरीर को छोड़ कर चली जाती है तब ही सबको ज्ञात होता है की वह भला मानस था । उसके द्वारा किये गए काम सराहनीय हैं । ये सब बांटे तो उसके जीवित रहते भी तो की सकती थी । आखिर ये कैसी राजनीति हमारे समाज में फैली है की इंसान के मरणोपरांत ही उसके अनूठे कार्य की प्रशंशा होती है । क्या केवल यादों में ही किसी को अच्छा या बुरा कह देने से काम ख़त्म हो गया । यदि किसी की वास्तविक प्रशंशा करनी हो तो उसके रहते, उसके समक्ष करनी चाहिए ताकि एक स्पष्टवादिता के भाव से समाज को ओत प्रोत किया जा सके ।

आज भले ही सभी अखबारों में लेखों , सम्पादकीय और स्तंभों में ज्योति बासु जी को राजनीति का आदम पुरुष की संज्ञा दी जा रही है पर इन्ही बासु जी को कांग्रेस ने हाल ही में बने सरकार से ये कह कर किनारा कर लिया था की वाम दल की कोई निश्चित सोच नहीं की कैसे देश को विकास के पथ पर ले जाया जाए । जब कांग्रेस ने केंद्र में सत्ता पायी तो पत्रकारों के पूछे सवाल पे स्पष्ट उत्तर मिला था की लेफ्ट द्वारा बार बार सर्कार को भ्रमित करने का काम किया जाता रहा है । इसलिए इस बार कांग्रेस ने अकेले , बिना लेफ्ट की मदद के सरकार बनाने तथा चलाने का काम करेगी । वहीँ विपक्षी पार्टियाँ भारतीय जनता पार्टी , समाजवादी पार्टी तो पहले से ही लेफ्ट की नीतियों पर प्रश्न उत्थाये हुए हैं । यहाँ तक की बंगाल में वामदल की चीर प्रत्ज्द्वंदी ममता बेनर्जी ने भी बासु और उनकी पार्टी को गलत नीतियों का पोषक बता कर सत्ता पर काबिज हुई । और आज ये ही सारे दुनिया से रूठे हुए महान जीवन को याद की लोरी में गुनगुना रहे हैं ।।।

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