स्पॉट फिक्सिंग का जिन्न एक बार फिर से बोतल से बाहर
निकाल आया है। इस जिन्न ने भारत ही नहीं विश्व क्रिकेट जगत में हड़कंप मचा दिया
है। लेकिन क्या इसकी स्थिति वर्ष 2000 में हुई फिक्सिंग की जांच की तरह होगी, इस पर अभी
से सवाल उठने शुरू हो गए है। हालांकि इस बार दिल्ली पुलिस ने स्पॉट फिक्सिंग में
पकड़े गए राजस्थान रॉयल के तीन क्रिकेटरों पर अपराधिक मामला मकोका के तहत दर्ज
किया है। ऐसे में यह पहला केस होगा, जिसमें कोई भारतीय क्रिकेटर स्पॉट फिक्सिंग मामले में जेल
जाएगा।
स्पॉट फिक्सिंग को लेकर हल्ला होना भी शुरू हो गया है।
इस मामले में अगर सबसे अच्छी बात अगर कोई है तो वह दिल्ली पुलिस कमिश्नर नीरज
कुमार का होना। क्योंकि नीरज कुमार उस समय सीबीआई में थे, जब वर्ष 2000 में यह
भूत पहली बार कब्र से बाहर निकला था। उसी अनुभव के आधार पर नीरज कुमार ने इस मामले
को पकड़ा है। उनसे उम्मीद भी की जा रही है कि वह इस मामले को अच्छी तरह से निपटा
लेंगे। पर यह भी देखना होगा कि भारतीय क्रिकेट कंटोल बोर्ड इसके प्रति कितनी गंभीर
है। जहां तक बीसीसीआई की बात है तो वह केवल खिलाडियों पर आजीवन प्रतिबंध लगाने की
बात कहती है। बीसीसीआई हमेशा ही ऐसे मामलों से अपने को बचाती आई है। इसका एक
उदाहरण तो पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजहरूद्दीन है।
अज़हर पर भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने आजीवन प्रतिबंध
लगाया लेकिन जब अजहर आजीवन प्रतिबंध के मामले को लेकर आंध्र प्रदेश के उच्च न्यायालयगए
तो वहां से उनको बरी कर दिया गया। अजहर के छूट जाने पर बीसीसीआई ने चुप रहते हुए
उच्चतम न्यायालय में अपील करना तक उचित नहीं समझा। जबकि बोर्ड के तत्कालीन
उपाध्यक्ष खुद पूर्व कानून मंत्री अरूण जेटली थे। ऐसे में अगर बोर्ड किसी खिलाड़ी
पर आजीवन प्रतिबंध लगा भी देता है तो वह कोर्ट में जाकर छूट जाता है। बीसीसीआई
इससे कोई सबक लेने को तैयार नहीं है। वहीं खेल मंत्रालय भी इस पर चुप्पी सादे रहता
है। वह यह कह देता है कि बीसीसीआई उनके तहत नहीं आता लेकिन जब मैच फिक्सिंग या
स्पॉट फिक्सिंग पकडी ज़ाती है तो खेल मंत्रालय या बीसीसीआई नहीं,बल्कि देश
बदनाम होता है। इसके बावजूद खेल मंत्रालय बीसीसीआई पर सख्ती करना भूल जाता है और
मामला धीरे-धीरे समाप्त होता चला जाता है।
2000
में मैच फिक्सिंग का मामला आने के बाद खेल मंत्रालय या बीसीसीआई ने कभी खिलाड़ियों
को लेकर उन्हें नैतिक शिक्षा देने के लिए कोई पहल नहीं की। जबकि हैंसी क्रोनिए के
वर्ष 2000
में मैच फिक्सिंग में फंसने के बाद से दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट बोर्ड अपने सीनियर
ही नहीं जूनियर खिलाड़ियों को नैतिक शिक्षा देने के लिए पाठशाला का आयोजन करता आ
रहा है। बताया जाता है कि इस कार्यशाला में खिलाड़ियों को हैंसी क्रोनिए की तरह
क्रिकेटर बनने की बात तो की जाती है लेकिन मैदान के बाहर हैंसी की तरह से न
व्यवहार करने की बात पर जोर दिया जाता है। वहीं खिलाड़ियों को कैसे सट्टेबाज उनको
लालच देते हुए फंसा सकते है, इससे कैसे बचे आदि पर चर्चा की जाती है। जबकि भारतीय बोर्ड ने
आईसीसी के साथ कुछ राज्यों में इस तरह की पाठशाला लगाई भी, जो एक-दो वर्ष चलने के बाद
बंद हो गई। ऐसे में यह मामला तो कभी न कभी उठाना ही था, जो यह भूत 14 वर्षो के
बाद फिर से आ गया।
हालांकि इससे पहले कपिल देव वाली आईसीएल लीग में एक स्टिंग
ऑपरेशन के माध्यम से कई खिलाड़ियों को पकड़ा गया था लेकिन वह भी अधिक दिनों तक नहीं चल पाया। हां, इंग्लैंड
में मैच फिक्सिंग के मामले में पाकिस्तानी के तीन क्रिकेटरों को सजा जरुर हो चुकी
है। अब तो बस उम्मीद है कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड और खेल मंत्रालय अपने नियमों
परिवर्तन की बात दोहराने की जगह उन्हें कड़ाई से पालन कराने का ही मन बनाये।
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