भारतीय खेलों के लिए वर्ष 2013 का शुरुआती पांच महीने ग्रहण की तरह रहे। इस दौरान कभी खेल, तो कभी उसके खिलाड़ी तो कभी खेल विभागों के अधिकारियों पर समस्याएं ग्रहण बन कर घेरे रही। खेल और खिलाड़ियों पर लगे दाग की शुरुआत मुक्केबाज विजेंन्दर सिंह से हुई जो वर्तमान समय में दौलत, शोहरत और पैसे का खेल ‘इंडियन प्रीमियर लीग’ तक पहुँची। आईपीएल में खिलाड़ी, टीम और उनके मालिकों तक के नाम फिक्सिंग मामले में संलिप्त होने के आसार नज़र आ रहे हैं।
भारत में खलों की लोकप्रियता जिस तरह
तेजी से बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे खेल और खिलाड़ी अपने स्वार्थ व हित मात्र को
पूरा करने के लिए अपने अपने खेल कौशल को बेचने में लगे हैं। वैसे तो खिलाड़ियों के
डोपिंग और फिक्सिंग के मामले हमेशा से सामने आते रहें हैं लेकिन इस साल तो इन
घटनाओं ने एक के बाद एक सभी मर्यादाएं तोड़ दीं। साल के पांच माह भी ढ़ंग से नहीं
बीते हैं कि तीन बड़े मामले मुह बाये सामने खड़े हैं, जिसने सारी दुनिया के आगे
देश का सर शर्म से झुका दिया है।
मार्च महिना की सात तारीख को देर रात
भारतीय एथलैटिक खेल मुक्केबाजी को तब बहुत बड़ा झटका लगा जब ओलंपिक के पदक विजेता
भारतीय मुक्केबाज विजेंदर सिंह और राम सिंह जैसे खिलाड़ियों के नाम हेरोइन (ड्रग्स)
की सप्लाई में सामने आया। ओलंपिक पदक विजेता विजेंद्र सिंह जैसी दुनियाभर में
मशहूर हस्ती का नाम इस प्रकार की ओछी हरकत में लिप्त पाये जाने से पूरे भारतीय खेल
को शर्म का सामना करना पड़ा था। मामला तब और गरमा गया जब पुलिस ने ड्रग तस्करों की
गिरफ्तारी के बाद उनके द्वारा बताए गए जीरखपुर के एक घर में छापा मारा तो 130 करोड़ की 26 किलो हेरोइन बरामद हुई। जिस घर से यह हेरोइन बरामद हुई, उस घर के बाहर विजेंदर की पत्नी की कार खड़ी थी। इतना ही नहीं जब पुलिस ने ड्रग
तस्कर एनआरआई (प्रवासी भारतीय) अनूप सिंह काहलों को दबोचा तो उसने विजेंद्र का नाम
लिया। इस पर पुलिस ने नाडा से जांच करवाई और रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद भी पंजाब
पुलिस ने विजेंद्र को ही दोषी माना। तकरीबन दो महीने तक चले इस प्रक्रिया के बाद विजेंद्र
सिंह और राम सिंह को को बरी किया गया।
विदित हो कि ओलंपिक में कबड्डी के खेल
की तहत ही भारतीय पहलवान सुशील कुमार ने देश को पदक दिलाया था। जब बात नहीं बन पाई
तो आईओए ने समस्या के समाधान के लिए आईओसी के साथ बातचीत करने का फैसाला किया।
बीते 15 मई को जब इस मामले को लेकर लुसाने मे बैठक हुई तो आईओसी ने आईओए को 15 जुलाई
तक अपने सदस्यों की बैठक बुलाने को कहा है। उसने आईओए को एक सितंबर तक अपने नए
पदाधिकारियों का चुनाव कराने की समय सीमा भी दी। आईओसी ने इस मामले पर आईओए को साफ
तौर पर कहा है कि वह अपने सदस्यों की बैठक 15 जुलाई को करें ताकि उसके संविधान की
समीक्षा हो सके और नए संविधान में सुशासन और नैतिकता के सभी मापदंडों को लागू किया
जा सके। संशोधनों के लिए प्रस्ताव निलंबित आईओए की सदस्यता और आईओसी से आना
चाहिए।
कुछ ऐसी ही एक और विवादित घटना
इंडियन प्रीमियर लीग में देखने को मिली है जहां खिलाड़ियों द्वारा स्पॉट फिक्सिंग
का मामला प्रकाश में आया है। वर्ष 2007 में शुरु हुआ पैसों
का एक ऐसा खेल जहां देश के जाने-माने व्यापारी से लेकर बॉलीवुड की हंस्तीयों ने
अपने मनोरंजन के लिए फटाफट क्रिकेट के इस पहलु में एक फ्रेंचाइंडी टीम खरीदी। इस
खेल में छक्कों-चौकों और विकेटों के साथ ही पैसा-शराब और शबाब का एक बेहतरीन
कॉकटेल देखने को मिलता है। जब इस खेल की शुरुआत हुई तब इसकी लोकप्रियता मनोरंजन के
तौर पर काफी बढ़ी लेकिन दो वर्षों के खेल के बाद क्रिकेट के इस संस्करण को भी ग्रहण
लगने लगा।
कहते हैं न जब दौलत और शौहरत का मेल
होता है तो गरिमा की प्राथमिकता पीछे छुट जाती है और स्वंय का हित दिखने लगता है।
आईपीएल के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ जब इसके सीजन-6 में राजस्थान रॉयल के तीन खिलाड़ी
श्रीसंत,
चंदीला और अंकित चाह्वान को स्पॉट फिक्सिंग मामले में
गिरफ्तार किया गया। वैसे तो 2005 में भी फिक्सिंग का
मामला सामने आया था लेकिन इस साल स्पॉट
फिक्सिंग के मामले ने सारे रिकार्ड तोड़ दिये। इन तीन खिलाड़ियों के गिरफ्तारी के
बाद तो मैच फिक्सिंग में एक के बाद एक बड़े नाम सामने आने लगे। फिल्म स्टार बिंदु
दारा सिंह के अलावा दो बार की चैंपियन चेन्नई सुपर किंग्स के मालिक गुरूनाथ
मईयप्पन को पुलिस ने सट्टेबाजी के मामले में गिरफ्तार किया। फिक्सिंग और सट्टेबाजी
की आंच तो अब भारतीय क्रिकेट नियंत्रक बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष एन. श्रीनिवासन
तक भी पहुँच गया है। अब आलम यह है कि पूर्व खिलाड़ियों सहित राजनेता सभी
श्रीनिवासन को हटाये जाने की मांग करने लगे हैं। इन सभी घटनाओं ने देश के खेल और
उसकी गरिमा दोनों को तार-तार करने का काम किया है, ऐसे में इस वर्ष के शुरुआती
पांच महीने में इन घटनाओं को भारतीय खेल का काला अध्याय कहना गलत नहीं होगा ।
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