मंगलवार, 19 जुलाई 2011

कौन लेगा 'बिग थ्री' की जगह?

द्रविड़ और लक्ष्मण दोनों का ही ये आख़िरी इंग्लैंड दौरा हो सकता है. आज यदि सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण अचानक से अवकाश ले लें तो ज़रा सोचिए भारतीय बल्लेबाज़ी क्रम कैसी नज़र आएगी. और ये बिल्कुल ही काल्पनिक स्थिति हो ऐसा भी नहीं है, ये शायद जल्द ही हक़ीकत बन जाए. कितनी तैयार है भारतीय टीम इन रिक्त स्थानों को भरने के लिए यह भी सामने आ जायेगा ?

इन तीनों बल्लेबाज़ों के क्रिकेट अनुभव को जोड़ें तो उन्होंने ४५३ टेस्ट खेले हैं, ३५,१५२ रन बनाए हैं और ९९ शतक लगाए हैं. ऐसे दिग्गजों की जगह कैसे भरी जा सकती है? लक्ष्मण इस नवंबर में ३७ साल के हो जाएंगे जबकि सचिन और द्रविड़ अपने अगले जन्मदिन पर ३९ मोमबत्तियां फूंकेगे. भारत की कोशिश यह सुनिश्चित करने की होगी कि तीनों एक साथ ही रिटायर न हो जाएं. ये देखना होगा कि ये बारी-बारी से रिटायर हों और नए खिलाडियों को दुनिया के आजतक के सबसे बेहतर मध्यक्रम बल्लेबाजों में गिने जानेवाले खिलाडियों से दिशानिर्देश मिल सके. इन बल्लेबाज़ों में से अब शायद ही कोई दोबारा इंग्लैंड के दौरे पर आए वैसे ये निश्चित तौर से कभी नहीं कहा जा सकता.

मिसाल के तौर पर पिछली बार जब भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर गई तो सचिन तेंदुलकर जहां भी गए उन्हें हर जगह प्यार भरी विदाई दी गई लेकिन अब ये लगभग तय है कि वो इस साल के अंत में होनेवाले ऑस्ट्रेलियाई दौरे में फिर शामिल होंगे. इन तीनों खिलाडियों की महानता इस बात में झलकती है कि क्रिकेट जगत से उनकी विदाई की इबारत कई बार लिखी जा चुकी है लेकिन वो हर बार गेंदबाज़ों के लिए एक बुरे सपने की तरह उभरकर आए हैं. तीनों ही बल्लेबाज़ों के पास इंग्लैंड में अपने रिकॉर्ड की कुछ कमियों को डूर करने का भी मौका हैं.

भारत में लोग यह मान चुके हैं सचिन जैसा दूसरा कोई पैदा नहीं होगा! जैसे सचिन और द्रविड़ दोनों ने मिलकर कुल ८३ टेस्ट शतक लगाए हैं लेकिन क्रिकेट का मक्का कहे जानेवाले लॉर्ड्स के मैदान पर एक भी शतक नहीं है. यदि इसमें सुनील गावस्कर के ३४ शतकों को भी जोड़ दिया जाए तो ये अपने आप में चौंकाने वाली बात है कि भारत के तीन सबसे ज्यादा शतक लगानेवालों में से किसी ने लॉर्ड्स पर शतक नहीं लगाया है. इंग्लैंड में लक्ष्मण का सर्वाधिक स्कोर ७४ रनों का है और शायद वो उसे सुधारने की कोशिश करें.

युवा खिलाडी

जिन युवा खिलाडियों ने पिछले दिनों में उम्मीद जगाई है उनमें से चेतेश्वर पुजारा चोटिल हैं, विराट कोहली का फ़ॉर्म ख़राब चल रहा है, मुरली विजय वेस्टइंडीज़ में संघर्ष करते नज़र आए और सिर्फ़ सुरेश रैना जिन्होंने श्रीलंका में अपने करियर के पहले टेस्ट में शतक जमाया वेस्ट इंडीज़ में सफल होते दिखे. इंग्लैंड में सोमरसेट के ख़िलाफ़ अभ्यास मैच में भी उन्होंने शतक जमाया.

मध्यक्रम में जिन बल्लेबाज़ों की गाडी छूट गई है, भले ही थोड़े समय के लिए, वो हैं तमिलनाडु के सुब्रमण्यम बद्रीनाथ और मुंबई के रोहित शर्मा. इस सूची में काफ़ी दम है और थोड़ी अनुभव भी. बल्कि कोहली तो शायद भविष्य में टीम इंडियन के कप्तान भी बन जाए.

टेस्ट जीवन

सचिन तेंदुलकर :- टेस्ट जीवन की शुरूआत १९८९ में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कराची में
राहुल द्रवि‹ड :- टेस्ट की शुरूआत जून १९९६, इंग्लैंड के ख़िलाफ़ लॉर्ड्स में
वीवीएस लक्ष्मण :- टेस्ट जीवन की शुरूआत नवंबर १९९६, दक्षिण अफ्रीका के ख़िलाफ़ अहमदाबाद में

भारतीय सेलेक्टरों ने शायद रक्षात्मक नीति अपनाई जब उन्होंने कोहली को इंग्लैंड के दौरे पर मौका नहीं दिया. लेकिन वो अभी २२ साल के ही हैं और बिग थ्री के रिक्त किए स्थान को भर सकते हैं. कोहली एक अंदर एक बुलडाग (गंभीर बल्लेबाजी के हुनरमंद) का चरित्र है. एक बार यदि उन्हें अपनी जगह मिल गई तो वो उसे छोड़ेंगे नहीं.

रैना से उम्मीद

तेज़ शॉर्ट पिच गेंदों के ख़िलाफ़ रैना की कमज़ोरी जगजाहिर है लेकिन उनके अंदर का जुझारूपन इस कमज़ोरी के बावजूद उन्हें जीत दिलाता रहता है. ठोस तकनीक सचिन और द्रविड़ जैसे खिलाडियों की पहचान है लेकिन लक्ष्मण ने दिखाया है कि कलेजा बड़ा हो तो ऑफ़ स्टंप के बाहर की कमज़ोरी से निबटा जा सकता है. रैना में भी भविष्य के कप्तान की संभावना है.. ज़िम्बाब्वे के दौरे पर वो भारतीय टीम का नेतृत्व भी कर चुके हैं!

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में तेईस साल के पुजारा की ज्यादा परीक्षा नहीं हुई है, लेकिन जिस तरह से उन्होंने बैंग्लोर टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ पारी खेली वो सराहनीय थी. भारत वो टेस्ट मैच जीता था. तीसरे नंबर पर खेलते हुए उन्होंने शानदार ७२ रन बनाए और उनसे कई बड़ी पारियों की उम्मीद जगी लेकिन आईपीएल में लगी चोट ने उन्हें वेस्ट इंडीज़ और इंग्लैंड के दौरे से बाहर रखा है. जब उन्होंने अपने करियर की शुरूआत की तो उन्हें अपनी ठोस तकनीक और लंबी पारी की भूख की वजह से द्रविड़ के स्वाभाविक उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जा रहा था. मुरली विजय को एक और उभरते द्रविड़ की तरह देखा जा रहा है. वैसे भी भारत में ये लगभग मान ही लिया गया है कि अब दूसरा तेंदुलकर नहीं पैदा हो सकता!

एक ओर जहाँ विराट कोहली के अंदर आसानी से अपनी जगह नहीं छोड़ने का जज्बा है, वहीँ मुरली विजय के तेवर भी बड़े मैचों वाले हैं और उनमें भी पिच पर चिपकने वाले वो गुण हैं जिनसे बड़े स्कोर बनते हैं. आईपीएल ने उनकी तकनीक को ज़रूर नुकसान पहुंचाया है क्योंकि उन्हें कई बार पहले से फ्रंट फुट पर खेलने का मन बनाते देखा गया है और टी-२० मैचों में फ्रंट फ़ुट को गेंद की लाईन से हटाते देखा गया है. सत्ताईस साल के विजय कोई नए नवेले नहीं हैं और इसलिए उन्हें वापस ड्रॉइंग बोर्ड पर जाने की ज़रूरत है.

युवराज का अनुभव

युवराज सिंह इतने समय से खेल रहे हैं कि कई बार आश्चर्य होता है जब पता चलता है कि उनकी उम्र ३० से नीचे है. एक दिवसीय मैचों में उनकी जगह को कोई चुनौती नहीं दे सकता, उन्होंने २७४ एक दिवसीय मैच खेले हैं. लेकिन सिर्फ़ ३४ टेस्ट मैच में उन्हें जगह मिली है और वहां वो अपने को स्थापित नहीं कर पाए हैं. उनके बारे में यही कहा जा सकता है कि जब वो चल जाते हैं तो अद्भुत नज़र आते हैं लेकिन जब नहीं चल पाते तो स्विंग और स्पिन दोनों ही के ख़िलाफ़ संघर्ष कर रहे होते हैं. बदलाव के दौर में शायद उनका अनुभव काम आए लेकिन उन्हें अब भी ये साबित करना है कि वो लंबी रेस के घोड़े हैं.

जब फ़ैबुलस फ़ोर के नाम से मशहूर बेदी, प्रसन्ना, चंद्रशेखर और वेंकटराघवन का स्पिन दौर खत्म हुआ तो कई लोगों को उम्मीद थी कि उनके उत्तराधिकारी भी बिल्कुल उन्हीं के जैसे होंगे. और इसलिए उनकी जगह आए गेंदबाज़ों की काफ़ी आलोचना हुई कि वो फ़ैब फ़ोर जैसे नहीं है. अब प्रशंसक वो ग़लती नहीं दोहराएं तो बेहतर है क्योंकि इससे उन नए खिलाडियों पर दबाव और ज्यादा बढेगा जो अपने समय के महानतम बल्लेबाज़ों के पदचिन्हों पर चलने की कोशिश कर रहे होंगे!.....

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