शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

एक सच जीवन का ....

"कहीं सलाखें लोहे की, कहीं सलाखें तृष्णा की,
कहीं सांस का आना जाना तक पीड़ा का बंधन है/
हम सब सिलबट्टे पर रखकर खुद अपने को पीस रहे हैं,
और जमाने की नजर में- मिला मुफ्त का चन्दन है//

संबंधों के कोलाहल में सिर्फ स्वार्थ की अनुगूँज हैं,
...वरना मन की देहरी पर तो सन्नाटें ही बिखरे हैं/
रहा सवाल उड़ने का हवा में तो सुनो सलोने पंछी,
पंख तुम्हारे भी कतरे हैं, पंख हमारे भी कतरे हैं...//"

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