‘‘तुम जैसा समझते रहे वैसा तो नहीं मैं,
कांटा हूँ मगर फूल पे चुभता तो नहीं मैं!
अपनों से तो रूठा हूँ मैं सौ बार बहरहाल,
पर गैरों में जाकर कभी बैठा तो नहीं मैं!
रोता है अब भी दिल मेरा अक्सर ये सोचकर,
भूला हैं मुझे वो, उसे भूला तो नहीं मैं!
खुद्दारी की कुछ दाद तो तुम्ही दो मेरी आँखों,
हालात तो रोने के थे रोया तो नहीं मैं! "
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