शुक्रवार, 1 जून 2012

आगे ही बढ़ता रहा...


"ये जिन्दगी चलती रही, वक्त भी गुजरता रहा,
मैं अपनी धुन में गिरता और संभलता रहा।

जो जागने के दौर में, मैं था बस सोता रहा,
जब नींद आंखों से गयी तो हार पर रोता रहा।

फिर संभल कर राह पर मैं तो बस चलता रहा,
सुध नहीं रखी कोई, ठोकर लगी कि पांव जलता रहा।

हर अंधेरी राह पर भटकन का डर लगता रहा,
पर दिलेरी आस की और रास्ता कटता रहा।

सवालों के उलझनों में भी कई बार उलझता रहा,
फिर जवाबों की फिराक में रात-दिन मचलता रहा। 

अभी दूर है मंजिल मेरी हरपल इसका अंदेशा रहा,
पर उसे पाने की ख्वाहिश दिल में बस पलता रहा।

पा ही जाउंगा मैं मंजिल, कल कोई कहता रहा,
पर जुनून-ए-जीत में, आगे को बढ़ता रहा...आगे ही बढ़ता रहा।"

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर सकारात्मक सोच के साथ लिखी गई रचना

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    1. जी हौसलाअफजाई का शुक्रिया... मेरी कोशिश आपको पसंद आयी, इससे बेहतर मेरे लिए कुछ नहीं।

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