शनिवार, 13 अगस्त 2011

‘‘कुत्तों को नहीं हजम होता घी....’’

कहते हैं न कि अगर किसी को उसकी औकात से ज्यादा खुशी मिल जाती है तो वह उसे संभाल नहीं पाता, कुछ ऐसा ही हाल इंग्लैंड क्रिकेट टीम का है। टेस्ट क्रिकेट की नंबर एक टीम भारत को लगातार दो टेस्ट मैच में पटखनी देने के बाद नंबर एक बनने की कगार पर खडी इंग्लिश टीम इस बात को नहीं पचा पा रही है और भारतीय खिलाडियों के बारे अनाब-शनाब बयानबाजी कर ठेठ हिंदी की एक कहावत ‘कुत्तों को नहीं हजम होता घी...’ को चरितार्थ कर रही है।

इस बात में कोई दो राय नहीं कि इंग्लैंड टीम अपने पूरे रौ में है और उसके खिलाडी अपने जीवन के सबसे शबाब वाले फार्म के स्तर से गुजर रहे हैं। ऐसे में जीत और शानदार प्रदर्शन के लिए उनकी प्रशंसा लाजमी है लेकिन अपनी जीत को दूसरों की हार से जोडना तथा सामने वाली टीम पर छींटाकशी करना सही नहीं। वैसे भी क्रिकेट को जैन्टलमैंस गेम कहा जाता है और बीते सालों तक यह परिपाटी कायम भी रही। जब कपिल देव, सुनील गावस्कर, एलेन बार्डर, माइकल होल्डिंग और स्टीव वॉ जैसे कई खिलाडी अपने समय में खेल के प्रति मैदान पर काफी उग्र रहे लेकिन उनका खेल और व्यक्तिगत पहलू कभी एक-दूसरे के आडे नहीं आये। जितनी उग्रता खेल में दिखी, उतनी ही सरलता उनके संवादों में थी। वह देश के लिए खेलते हुए भी खेल को ज्यादा तवज्जों देते थे जबकि आज क्रिकेट का स्वरूप बदल गया है और जैन्टलमैंस गेम अब अपशब्दों के शब्दावली के नये आयाम गढते हुए छींटाकशी के मैसलेनियस स्तर तक आ गया है। जहां किसी भी टीम और खिलाडी पर कोई भी किसी भी प्रकार के नजरिये के साथ बयानबाजी कर देता है, और यदि किसी प्रकार से उसके खिलाफ कार्रवाई का डर बनाया जाता है तो वह झट से शर्मिंदगी की हदों को पार का माफी मांग लेता हैŸ। जिसे आज कल सोशल मैनर कह कर संबोधित किया जाने का चलन है।

इंग्लिश टीम जो अपनी ही जमीन पर भारतीय शेरों को लगातार खेल के उम्दा प्रदर्शन से धमकाये हुए है कि वह उसके नंबर एक की बादशाहत पर कब्जा कर लेगी, जो अब शायद साकार होने की ओर है। बर्मिंघम में खेले जा रहे तीसरे टेस्ट मैच में भी इंग्लैंड की पकड मजबूत है और अब शायद इस बात का इंतजार है कि भारत अपनी हार को कितना लम्बा खींच सकता है। इस सबके बीच भले ही इंग्लैंड प्रदर्शन से आंकडों को आधार बना नंबर एक बन जाये लेकिन इंग्लिश क्रिकेट टीम का व्यवहार और वहां की मीडिया का रवैया बादशाहत के लायक नहीं है। नंबर एक भारत भी रहा है या कहिए अभी है और पिछले दस माह से अपने बादशाहत को कायम भी रखे हुए हैŸ लेकिन कभी भारत को अपने नंबर एक होने पर दंभ नहीं रहा। जबकि बादशाहत की ओर अग्रसर इंग्लिश टीम पर पहले से ही अव्वल होने का सुरूर इंग्लिश खिलािडयों और वहां की मीडिया पर छाने पर लगा है तभी तो वह भारतीय टीम की हार और खिलाडियों के लचर प्रदर्शन को लतीफों और अट्ठहास के रूप में भूना रहे हैं। एक ओर जहां इंग्लिश मीडिया ने भारतीय टीम को बूढे बार्डर काली’ प्रजाती के कुत्ते से तुलना की, वहीं द्रविड पर कटाक्ष करते हुए कहा है कि अब समझ में आया कि उन्हें वाल (दीवार) क्यों कहा जाता है क्योंकि गेंद उनसे टकराकर वापस आ जाती है। इसके अलावा सहवाग पर बॉल टेंपरिंग का आरोप भी लगाया है।

भारतीय टीम और खिलाडियों पर किये गये कटाक्ष से यह तो स्पष्ट है कि इंग्लिश टीम जीत और नंबर एक के दर्जे से करीबी को पचा नहीं पा रही है। इसी लिए क्रिकेट जनक देश अब तक की अपनी नाकामियों और हार को खुन्नस के तौर पर बाहर निकाल रही है। आखिर इंग्लिश खिलाडी और वहां की मीडिया भी बेचारी क्या करे, पहली बार तो ऐसा मौका आया है कि इंग्लैंड विशेष तौर पर जाना जायेगाŸ। क्रिकेट का जन्मदाता होने के बावजूद वह न तो विश्वविजेता बन सका है और न ही आज से पहले कभी खेल में उसका वर्चस्व रहा है। बीते साल दो साल में ही वह निखरा है। ऐसे में छोटे बच्चें की तरह जो लगातार परीक्षा में फेल होने के बाद जब पास होता है तो सोचता है उससे बेहतर कोई नहीं और गर्व में फूल जाता हैŸ। कुछ ऐसा ही हाल इंग्लिश मैन का भी है जीत मिल रही है, नंबर एक बनने जा रहे है तो हार और मात के कढवे घूंट को पीने के बाद मिल रही देशी घी में लिपटी सौधी जीत की खुशी को वह पचा पाने नहीं पा रहे हैं। अपने इस व्यवहार से उन्होंने दर्शा दिया है कि वह तालाब के मेंढक की तरह हैं तो थोडी सी जीत की बारिश को ही सारा समंदर मान लेते हैं और खुशी में टर्राने लग पडते हैं।

इन सबके बावजूद इंग्लिश टीम और मीडिया को ध्यान रखना चाहिए उनकी ये तल्ख टिप्पणियां किस टीम और किन खिलाडियों पर आ रही है, जो अपने खेल और खेल भावना के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैंŸ। वैसे भी राहुल द्रविड और विरेंद्र सहवाग को गोरी चमडी के इन सूअरों के उटपटांग बयानबाजी से कोई फर्क नहीं पडेगा। जो खिलाडी क्रिकेट के दो प्रमुख फार्मेट में साढे दस हजार से ज्यादा रनों के पहाड पर खडा हो वह भला जमीनी खोह स्तर वाली सोच रखने वाले इंग्लिश मैन की परवाह क्यों करेगा। राहुल द्रविड को पता है कि टीम में उनकी क्या उपयोगिता है और किस लिए उन्हें ‘द वाल’ और ‘श्रीमान भरोसेमंद’ कहा जाता है। वैसे भी द्रविड ने अपने करियर में कभी कुत्तों के भौकने की परवाह नहीं की क्योंकि उन्हें पता है उनके हर काम के साथ जहां कुछ लोग आपकों पसंद करते हैं तो उसी क्रम में कुछ आलोचक भी जन्म लेते हैंŸ, जिनका उद्देश्य मात्र लोगों की आलोचना करना ही होता है।

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