मंगलवार, 30 अगस्त 2011

आज का युवा....

आज फुर्सत कहाँ जवानी को जो देखे जमी की तरफ,

उनकी हर एक शाम तो बस रंगीन मिजाज चाहिए,


जिधर भी नजरे उठाकर देखा टिमटिमाते जुगुनू ही नजर आये,

खुद मिटा कर भी जले एक ऐसा आफताब चाहिए,


सिर्फ हलचल पैदा करने की मेरी नियत नहीं रहती,

उठकर जो गिरे मुझे तो वो सैलाब चाहिए,


अपनी हर एक साँस को इस वतन के नाम कर चूका कब का,

मुझको दरकार खून की है, अफ़सोस तुम्हे अब भी किताब चाहिए !”

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