"जब तेरी धुन में रहा करते थे,
हम भी चुपचाप जीया करते थे।
आंखों में प्यास हुआ करती थी,
दिल में हर पल तूफां उठा करते थे।
लोग पूछते थे दुनिया-जहान की बातें,
और हम बस तेरा जिक्र किया करते थे।
सच समझकर तेरे हर झूठे वायदे को,
निगाहें अपनी रस्तों पर टिका रखते थे।
जब भी आहट हो जाये तेरे आने की,
दिल में हजारों फूल खिला करते थे।
दिल के दरों-दीवार को सजाने की खातिर,
हर सांस को तेरे नाम की सजा देते थे।
कल फिर आई तेरी याद ने, सब ताजा कर दिया,
कि हम भी कभी मोहब्बत किया करते थे।"
नसरत फतह अली जी की शानदार गजल...
हम भी चुपचाप जीया करते थे।
आंखों में प्यास हुआ करती थी,
दिल में हर पल तूफां उठा करते थे।
लोग पूछते थे दुनिया-जहान की बातें,
और हम बस तेरा जिक्र किया करते थे।
सच समझकर तेरे हर झूठे वायदे को,
निगाहें अपनी रस्तों पर टिका रखते थे।
जब भी आहट हो जाये तेरे आने की,
दिल में हजारों फूल खिला करते थे।
दिल के दरों-दीवार को सजाने की खातिर,
हर सांस को तेरे नाम की सजा देते थे।
कल फिर आई तेरी याद ने, सब ताजा कर दिया,
कि हम भी कभी मोहब्बत किया करते थे।"
नसरत फतह अली जी की शानदार गजल...
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