रविवार, 4 सितंबर 2011

... और किसी का

महफ़िल में हैं जलवा--नज़र और किसी का,

करता हूँ मैं सजदे, है असर और किसी का>


ये आज के लोगों की महोब्बत भी अजब है,

रहता है कोई दिल में, घर है और किसी।


आँखों की चमक उसकी बता देती हैं सब कुछ,

ख्वाब तो रखता हैं वो, पर और किसी का।


हम तो किया करते हैं हर बात उसी की,

और उसकी बातों में है, जिकर और किसी का।


तेरे गाँव के नहीं ये शहरों के मकाँ है,

यहाँ दीवार किसी की हैं दर और किसी का।


रखा था हमने जिसको इस दिल में सजाकर,

सुनते हैं उसके दिल में हैं घर और किसी का।


बरबादियों की दास्ताँ सुन कर के मेरी आज,

दामन भी हुआ तर, मगर और किसी का...।


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