"ख्वाहिशों की महफील थी यारों,
एक ख्वाहिश हम भी सजा बैठे,
उसे पाने की ख्वाहिश को,
दिल की ख्वाहिश बना बैठे।
उसके चेहरे पे एक नूर था,
जिसने नूर ही नूर में, हमें बेनूर कर दिया...
दिल भागा सीने से निकल कर, ऐसा की यारों,
कम्बख्त ने हमें, टकटकी लगाने का मजबूर कर दिया।
हर एक लम्हें में, सीने से निकली थी दुआयें...
दुआओं ही दुआओं का, काफिला चल पड़ा...
हर एक दुआ में, खुदा से मांगा उसे... और फिर...
रो-रो कर उसे मांगने का, सिलसिला चल पड़ा...।"
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