गुरुवार, 29 सितंबर 2011

अब कहां दोस्त मिले साथ निभाने वाले

अब कहां दोस्त मिले साथ निभाने वाले,

सबने सीखे हैं नये अंदाज जमाने वाले।


दिल जलाओं या दिये आखों के दरवाजों पर,

वक्त से पहले तो आते नहीं आने वाले।


अश्क बन कर मैं तेरी निगाहों में आऊंगा,

ऐ मुझे अपनी निगाहों से गिराने वाले।


वक्त बदला तो उठाते हैं उंगली मुझ पर,

कल तलक हक में मेरे हाथ उठाने वाले।


वक्त हर जख्म का मरहम नहीं हो सकता,

कुछ दर्द होते हैं ता-उम्र रूलाने वाले।


मैं तेरी सोहबत पर रंज भी करूं तो कैसे,

ये रूशवाई भी डालेंगी मेरी दोस्ती में दरारें।


कभी खुद को मानु भी दोषी तो भला क्या हो,

हमने जुर्म ही किये हैं बस तेरे तरक्की वाले।


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