गुरुवार, 22 सितंबर 2011

खुदाई का आलम...

"हो जाये असर कोई शायद दुआओं से

ये दर्दे-जिगर बढ़ने लगा हैं दवाओं से


हैं इश्क गर तो बाजियाँ दिल की ही लगेंगी

डरते हो मियाँ इतने भला क्यूँ खताओं से


नजरे बचा के देखता हूँ सबसे उसे रोज

मुझे देखता हैं वो भी तिरछी निगाहों से


रातों में जागते हो मेरी नींदों में आकर

दिन में भी निकलते नहीं हो तुम निगाहों से


आकर के मेरे दर से वापस ना चले जाना

तुम को ही हर रोज माँगा हैं खुदाओं से......"


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