"मुश्किल हूँ बहुत थोडा़ सा आसान कर मुझे
मिल जाये जमीं से जो, आसमान कर मुझे
हो फूल सा दिल जिसमे ना हो कोई फरेबी,
बच्चों की तरह ऐ खुदा नादान कर मुझे,
बढती हैं कैसे रौशनी आँखों की देखना,
दो चार दिन ख्वाबों में मेहमान कर मुझे,
रिश्तों की फेर-बदल की रफ़्तार कर धीमी,
कर इतना करम मौला फिर इंसान कर मुझे,
पहचान मेरी सिर्फ हिंदुस्तान हो रब्बा,
न कोई जात न धर्म-ओ-खानदान कर मुझे..."
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