सोमवार, 26 सितंबर 2011

तीसरे मोर्चे के लिए दिल्ली अभी दूर!

राजनीति में मतदाताओं को लुभाना तथा विकास व सुविधाओं के आश्वासन पर लोगों को मूर्ख बनाने की प्रक्रिया में अब तीसरा मोर्चा भी अपना स्थान तलाशने में जुट गया है । इस बाबत कुछ पार्टियां फिर से एक साथ आने को तैयार दिख रही है। वैसे तो इससे पहले भी वह एक बार हाथ मिला चुकी हैं लेकिन कुछ खास कमाल नहीं दिखा सकी।

वर्ष 2014 में लोकसभा चुनावों के मद्देनजर तीसरा मोर्चा गठजोड़ बनाने में जुटता नजर आ रहा है। इस बाबत समाजवादी पार्टी और वामपंथी आपस में हाथ मिलाकर सत्तारूढ़ सरकार और प्रमुख विपक्षी पार्टी को पछाड़ने तथा सत्ता में आने की जुगत भिड़ाने में लग गये हैं। हलांकि इस तीसरे मोर्चे की सोच काफी हल्की लगती है क्योंकि न तो इनके पास कोई ठोस मुद्दा है और न ही सरकार को घेरकर सत्ता हथियाने वाला कोई चेहरा। यहां यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर बिना चेहरे और मुद्दे के कोई भी गठबंधन सत्ताशीन कैसे हो सकता है?

राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो अन्य मोर्चा के लिए अभी भी परिस्थितियां प्रतिकूल नहीं है कि वह लोकसभा स्तर पर कांग्रेस या भाजपा के हाथों से सत्ता का मांझा खींच सके। फिलहाल कांग्रेस और भाजपा ही सत्ता के लिए प्रमुख उम्मीदवार हैं, जिनके मांझे पर जनता के विश्वास का शीशा पूरी मजबूती के साथ जुड़ा हुआ है। ऐसे में वह किसी भी तीसरे मोर्चे के सूती धागे को आसानी से कांट देंगे। जबकि तीसरे मोर्चे को मजबूती से सामने लाने की कवायद के बीच भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता डी. राजा का कहना है कि दोनों प्रमुख पार्टियां (कांग्रेस व भाजपा) जब जनता के प्रति अपने उत्तरदायित्व को ठीक से नहीं निभा रही हैं तो एक विकल्प के तौर पर तीसरे मोर्चे को लाना आवश्यक हो जाता है। इस लिए भाकपा अपने विचारों और देश के प्रति समर्पित विचारों वाली पार्टियों को एकत्रित करने में जुट गयी है।

तीसरे मोर्चे के लिए लामबंद हो रहे लोगों के बारे समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कहा कि वर्तमान राजनीतिक परिवेश में तीसरा मोर्चा ही समस्याओं से हलकान जनता के लिए राहत लायेगी। वहीं तेलगुदेशम पार्टी के नेता नामा नागेश्वर राव ने कहा कि भ्रष्टाचार के मुद्दे पर उनकी पार्टी भी अन्य समान विचारधारा वाली पार्टियों की भांति ही सोचती है। इसके लिए भ्रष्टाचारियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की वकालत भी करती हैं। ओ़डिशा में शासन कर रही बिजद वैसे तो वैचारिक तौर पर भाजपा और कांग्रेस से काफी अलग है पर तीसरे मोर्चे के लिए उसने अभी कोई मन नहीं बनाया है। वहीं तमिलनाडु में पूर्व में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) का कांग्रेस के साथ गठबंधन रहा है, अब सत्ता में आई अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम(एआईआईडीएमके) राज्य में लेफ्ट के साथ जुड़ी हुई है। जबकि राष्ट्रीय स्तर पर एआईआईडीएमके का भाजपा के साथ गठबंधन की संभावना ज्यादा हैं।

भाजपा और कांग्रेस से इतर बाकी सारी छो़टी-बड़ी राजनीतिक पार्टियों के विचारों एवं उनकी कार्यप्रणालियों को देखते हुए राजनीतिक विशेषज्ञों का यही कहना है कि अभी तीसरा मोर्चा किसी प्रकार की शक्ति प्रदर्शन के लायक नहीं है। जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त के प्रोफेसर निसार उल हक का कहना है कि तीसरे मोर्चे का प्रदर्शन इस लिए दमदार नहीं होगा क्योंकि वर्तमान में वामपंथी खुद चोटिल हैं तो वह औरों को कैसे मजबूत करेंगे। इसी प्रकार, राजनीतिक विश्लेषक जी.वी.एल. नरसिम्हा राव का कहना है कि बीते हालातों को देखते हुए अब जनता भी सावधान हो गयी है। इस लिए वह भी तीसरे मोर्चे पर दाव लगाने की नहीं सोच रहें कि कुछ दिनों बाद ही यह मोर्चा फिर अस्थायी स्थिति बना देगा। विदित हो कि 1996 में देवगौड़ा के नेतृत्व में बनी तीसरे मोर्चे की सरकार अपना कार्यकाल दो साल भी पूरा कर सकी।

तीसरे मोर्चे की प्रमुख पार्टियों की स्थितियां भी पहले से तो बेहतर है पर ज्यादा प्रभावी नहीं हैं। समाजवादी पार्टी जहां केवल उत्तर प्रदेश में मजबूत हैं,जहां कुछ 545 लोकसभा सीट में 80 सीटे हैं। इसी प्रकार वामपंथ का केरल (20) और पश्चिम बंगाल (42) को छोड़कर कहीं भी आधार नहीं है। ऐसे में बिहार में अस्तित्व तलाश रही राष्ट्रीय जनता दल व लोकजनशक्ति पार्टी से तीसरे मोर्चे को बहुत अधिक उम्मीद नहीं है। सत्ता में बने रहने की लालसा लिये इन क्षेत्रीय पार्टियों का तीसरे मोर्चे से जुड़ने की संभावना कम ही है। ऐसा ही कुछ हाल जनता दल-सेकुलर और जनता दल यूनाइटेड का भी है। ऐसे में आपसी खींचतान के बीच कुछ एक पार्टियां मिलकर तीसरे मोर्चे को मजबूती नहीं दे पायेगी।

एक अन्य राजनीतिक जानकार भास्कर राव का कहना है कि दिल्ली की सत्ता से विरोध के भाव क्षेत्रीय पार्टियों को एक साथ तो ला सकते हैं लेकिन यह पार्टियां विकल्प के तौर पर नहीं उभर सकती। मुद्दों और साफ छवि के कद्दावर चेहरे की कमी के कारण ही तीसरे मोर्चे की भारतीय जनमानस के बीच अपनी पैठ बनाने की संभावना न के बराबर है।


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