“अपना
घर-बार हो तो बात बने,
दुनिया में भरा हो प्यार तो बात बने,
अपना पर्व-त्यौहार हो तो बात बने,
हो अपना भी अधिकार तो बात बने,
ना हो सिर्फ संस्कारों का भौंडा प्रदर्शन,
अब सच्चा सम्मान हो तो बात बने,
गुल जो गुलशन में खिलाए हैं देखे,
उन पर भी कोई खार हो तो बात बने,
शौक-ए-आवारगी भर नहीं अपनी,
रोजी-रोजगार हो अपना तो बात बने,
प्रेम-पत्रों को तो कब से पी के बैठे हैं,
अब अपना अखबार हो तो बात बने।”
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