“कभी अपनी भी चमक सितारों सी रही है,
आज भले हरकतें आवारों की सही है।
जो याद तेरी मेरे संग हर वक्त रही है,
उस याद के पाबंद कोई वक्त नहीं है।
सुकून आज भी देते हैं तेरी यादो के तराने,
जैसे चिर-मरुस्थल में बारिश-ए-बौछार पड़ी है।
हमने काटी वो सजा जिसका हमको इल्म नहीं है,
और वो कहते रहे कि ये सजा एकदम सही है।
मेरी बेगुनाही का पता रखकर भी वो आये नहीं,
अब तो बस सोचूं यही, दिल नहीं या मैं नहीं।
सोचता हूँ छोड़ दूँ, याद करना और सांस लेना,
पर भला ये खयाल भी दिल में क्यों आता नहीं।
अब तो मेरी जिंदगी का भी सफर चलता नहीं है,
कि रस्तें पर क्या चलें जब वो मंजिल ही नहीं
है।
बीत जाये ये जिंदगी भी फकत जां-निसारी की
तरह,
कि लोग फूंके भी तो कहें, ये जिन्दगी यारों
सी रही है।”
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